Ranthambore ka Itihas एक वीर इतिहास है और यह भारतीय इतिहास में सर्वश्रेष्ठ इतिहास बि रहा है खासकर चौहान राजपूत के साम्राज्य का रणथंबोर का एक ऐसा इतिहास था जिसको दिल्ली सल्तनत को भी तोड़ने के लिए लोहे के चने चबाने पड़े थे।
रणथंबोर दुर्ग को छोड़कर राजस्थान के अधिकांश राजपूत ने दिल्ली सल्तनत के साथ समझौता कर लिया था उसके बाद उन्होंने अंग्रेजों के साथ भी संधि कर ली थी लेकिन रणथंबोर दिल्ली सल्तनत के लिए भी उसके बाद अंग्रेजों के लिए भी इसको जितना इतना आसान नहीं रहा था।
हाय मैं हूं डॉक्टर शेख नासिर इससे पहले कभी भी मैं किसी भी आर्टिकल में अपना परिचय नहीं दिया था मैं हमेशा World Wide History के नाम से ही चल रहा था। लेकिन इतिहास इतना वीर और महान इंसान का है जिसका नाम है हम्मीर चौहान इसके संदर्भ में मुझे अपना परिचय देना जरूरी है। अगर मैंने इतने पराक्रमी और वीर पुरुष के लिए भी अपना परिचय नहीं दिया तो यह इस वीर पुरुष की बे अदबी होगी।
Ranthambore ka Itihas काफी लंबे समय से चौहानों के इर्द-गिर्द घूमता था पर रणथंबोर का सबसे शक्तिशाली और पराक्रमी राजा था हम्मीर चौहान इस आर्टिकल को में इसी के विशेष संदर्भ में लिख रहा हूं हालांकि यह आर्टिकल कई आर्टिकलों से मिलकर पूरा होगा क्योंकि इसका इतिहास काफी बड़ा है जिस वजह से एक आर्टिकल में इसको लिखा जाना बहुत मुश्किल है।
इस आर्टिकल को इस कड़ी का पहला आर्टिकल माना जाए इसमें मैं रणथंबोर का दुर्गा उसकी स्थापना उसकी भौगोलिक स्थिति व दुर्ग स्थापत्य के बारे में डिटेल से बताने की कोशिश करूंगा और इस आर्टिकल को Ranthambore ka Itihas के ऊपर एक रिव्यू के तौर पर भी आप देख सकते हैं।
रणथंबोर दुर्ग: स्थापना भौगोलिक स्थिति व दुर्ग स्थापत्य
वर्तमान में रणथंबोर दुर्ग देश-विदेश के सभी सनीलियोन के लिए एक प्रमुख ऐतिहासिक पर्यटन स्थल है साथ इसके अंदर स्थित गणेश मंदिर के कारण यह एक प्रमुख धार्मिक स्थल के रूप में भी अपनी पहचान बनाए हुए हैं।
रणथंबोर दुर्ग तक जाने वाले मार्ग किसी रोमांचित कर देने वाली यात्रा से भी काम नहीं है घने जंगलों में ऊंची ऊंची के साथ-साथ ऊंची नीची पहाड़ियों के बीच गुजरता हुआ यह मार्ग वर्षा काल में और अधिक मनमोहक हो जाता है।
हरे भरे पेड़ जिन पर उछलते कुदते बंदर, यहां, जहां, वहां, भागते टहलते चलते हुए हिरनों के झुंड। कहीं-कहीं पर बहते हुए झरने, कहीं मार्ग से निकलता बरसाती पानी, कहीं एकदम सीधी चढ़ाई, कहीं एकदम से ढलान, आदि के बीच से गुजरते हुए इस रास्ते को अपने आप में ही देखने वाला रोमांचित हो जाता है। जब इस रास्ते से गुर्जर हम गुजर रहे थे तो हमें ऐसा लग रहा था मानो पूरी दुनिया को छोड़कर प्रकृति हमारी ही गोद में आ बैठी है।
रणथंबोर को छोड़कर राजस्थान के अधिकांश राजवंशों ने दिल्ली के बादशाहों की सल्तनत को स्वीकार कर दिया था उसके बाद अंग्रेजों के साथ संधि समझौते कर लिए थे। भारत की स्वतंत्रता तक किसी न किसी प्रकार अपने अस्तित्व को Ranthambore ka Itihas के द्वारा बचाए रखा। जब तक राह में इस किले में मौजूद थे अंतिम संस्कार तब तक इस किले को किसी को भी पता करने की हैसियत नहीं थी। हालांकि राव हमीर के बाद यह दोबारा कभी भी इतना बड़ा सट्टा का केंद्र नहीं बन पाया था।
रणथंभौर किला अपने मौलिकता को बरकरार रखते हुए तत्कालीन मंदिर, महल, व अन्य भवन अपनी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में आज भी राव हम्मीर के त्याग, बलिदान व साहस की कहानी बयां करते हैं। यह दुर्ग साक्षी है उन हजारों वीरांगनाओं के जौहर का जो धड़कते आज की लपटों में हंसते-हंसते सदा के लिए विलीन हो गई।
Ranthambore ka Itihas साक्षी है हम्मीर हठी की मासूम पुत्री देवलदे का जो मृत्भूमि को अंतिम प्रणाम कर पदम सरोवर में छल्ला लगा कर अपनी जीवन लीला को समाप्त कर लेती है। यह दुर्ग याद दिलाता है जुलाई 1301 ई के उसे हृदय विदारक दिन की जब प्रत्येक सीढ़ी पर फैला रक्त राजपूत सैनिकों की वीरता त्याग वह बलिदान का प्रमाण दे रहा था।
रणथंबोर दुर्ग की स्थापना
रणथंबोर दुर्ग के निर्माता एवं निर्माण कला को लेकर इतिहासकारों मैं काफी मतभेद है। एक प्राचीन मान्यता है कि इस दुर्ग के बनने से पहले इस स्थान पर पदम ऋषि का आश्रम था। आश्रम के समीप ही एक बड़ा तालाब था जो पदम सरोवर कहलाता था। कहां जाता है एक बार जयंत और रणधीर नामक दो राजकुमार शिकार खेलते हुए इस और आ निकले और उनकी भेंट पदम ऋषि से हो गई। ऋषि की प्रेरणा से उन्होंने इस स्थान पर रन रणस्तंभपुर नामक एक दुर्गा का निर्माण करवाया। आज भी इस दुर्ग में मौजूद तालाब को पद्मला तालाब कहा जाता है। दुर्गा का निर्माण करवाने से पहले भगवान श्री गणेश जी की प्रतिभा भी लगाई गई जो आज पूरे राजस्थान में प्रसिद्ध है।
वहीं कुछ अन्य इतिहासकारों का मत है की चंद्रवंशी राजा हस्ती के चचेरे भाई रति देव ने इस दुर्ग का निर्माण कराया था। वहीं कुछ अन्य इतिहासकारों की मान्यता है कि इस दुर्ग का निर्माण 944 ईस्वी में चौहान राजा रणथान ने करवाया था और उसी के नमानुसार इसका नाम रणथंम्पुर रखा गया था। जो आगे चलकर रणथंबोर हो गया। रणथंबोर का इतिहास जोधरात कृत हम्मीर रासो वह महेश कवि के अनुसार इस किले की नींव संभव 1110 ई. 1053 ईस्वी में रखी गई थी।
सभी मतों पर विचार करने के उपरांत निष्कर्ष हम यह कह सकते हैं कि दुर्गा की नींव व भले ही किसी के द्वारा भी रखी गई है किंतु इसको ऐतिहासिक पटल पर लाने का श्रेय चौहान वंशीय राजाओं को ही दिया जा सकता है। यह अनुमान लगाया जाता है कि इस दुर्ग का निर्माण लगभग आठवीं सदी के आसपास हुआ होगा परंतु यह निश्चित रूप से कहा नहीं जा सकता है।
चौहान वंश के प्रसिद्ध राजा पृथ्वीराज सिंह चौहान प्रथम के समय यह दुर्ग मौजूद था और उसके अधीन भी था इसका सूती है की पृथ्वीराज सिंह चौहान प्रथम ने यहां बने एक जैन मंदिर में स्वर्ण कलश चढ़ाई थे। पृथ्वीराज सिंह चौहान प्रथम का कल 1090 ई से 1110 ई के मध्य माना जाता है।
इस बात की अधिक संभावना है कि यह दुर्ग अपने निर्माण कल से ही चौहान वंश के शासको के अधीन रहा होगा या तो डायरेक्ट या इनडायरेक्ट के रूप में। रणथंबोर किले का वास्तविक निर्माण करता व निर्माण तिथि मैं भले ही मतभेद हूं पर यह सत्य है कि दसवीं शताब्दी तक यह दुर्ग अस्तित्व में आ चुका था और 12वीं शताब्दी तक चौहान शासको के नेतृत्व में यह दुर्ग इतना प्रसिद्ध हो गया कि उसे समय के लगभग सभी ऐतिहासिक ग में इस दुर्ग की भौगोलिक और सम्मिलित तिथि का उल्लेख मिलता है।
निष्कर्ष Ranthambore ka Itihas
Ranthambore ka Itihas के ऊपर हमारी यह पहली पोस्ट है और इसमें अभी तक हमने थोड़ा यही जाना है की कली की स्थापना कैसे हुई थी हमारी आप लोगों से गुजारिश है कि आप और तक जरूर बन रहे। आगे चलकर दिल्ली सल्तनत और रणथंबोर के बीच कौन-कौन सी लड़ाई हुई कैसे हुई वह सब आप जान जाएंगे।
https://youtu.be/3aAPp01hLfs
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