सन 1779 की बात है, जब हैदर अली ने मदाक्कारी नायक को हराने के बाद चित्रदुर्ग के किले पर कब्ज़ा करने की योजना बनाई। यह किला कर्नाटक की धरती पर अपनी विशालता और मजबूती के लिए मशहूर था। लेकिन इस किले की पहचान सिर्फ़ इसके पत्थरों और दीवारों से नहीं, बल्कि उन कहानियों से भी है जो पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाई जाती हैं। इन्हीं कहानियों में सबसे मशहूर है Onake Obavva story in Hindi – चित्रदुर्ग किले की वीरांगना की कथा, जिसने अकेले ही मूसल उठाकर दुश्मनों को मौत के घाट उतार दिया था।
कहानी शुरू होती है उस समय से, जब हैदर अली की सेना किले को तोड़ने में असफल रही। चारों तरफ़ से घेराबंदी की जा चुकी थी, लेकिन किला इतना मजबूत था कि सीधी लड़ाई में इसे जीत पाना लगभग नामुमकिन था। तभी हैदर के कुछ सैनिकों को किले में एक गुप्त रास्ते का पता चला। दरअसल, एक जगह पर किले की दीवार में इतनी चौड़ी दरार थी कि घुटनों के बल झुककर कोई एक-एक करके भीतर आ सकता था। इसी रास्ते से हैदर की सेना ने प्रवेश करने की योजना बनाई।
उस जगह की रखवाली करने वाला चौकीदार अपने घर दोपहर का खाना खाने गया हुआ था। उसकी पत्नी का नाम था ओबव्वा। लोग उसे प्यार से ओनके ओबव्वा कहते थे, क्योंकि “ओनके” यानी मूसल उसके हाथ में बाद में उसकी पहचान बन गया। उसी समय जब वह अपने पति के लिए पानी लेने पास के कुएँ पर गई, तो उसने दरार के पास कुछ सरसराहट सुनी। वह चौकन्नी हो गई और देखा कि दुश्मनों के सिपाही उस दरार से अंदर आने की कोशिश कर रहे थे।
अब सोचिए, अगर कोई और होता तो तुरंत भागकर अपने पति को बुलाता या मदद मांगने दौड़ जाता। लेकिन ओबव्वा का साहस कमाल का था। उसने किसी को परेशान नहीं किया, न ही शोर मचाया। वह सीधी अपने घर गई और वहां रखा लकड़ी का बड़ा मूसल उठा लाई। यही मूसल चावल कूटने के काम आता था, पर आज वह दुश्मनों की खोपड़ी फोड़ने वाला हथियार बनने वाला था।
Onake Obavva story in Hindi – चित्रदुर्ग किले की वीरांगना का सबसे रोमांचक पल यहीं से शुरू होता है। ओबव्वा उस दरार के पास जाकर छुप गई और जैसे ही हैदर अली का पहला सैनिक अंदर झुककर आने लगा, उसने एक ही वार में उसके सिर पर मूसल दे मारा। सैनिक वहीं ढेर हो गया। ओबव्वा ने बिना देर किए उसका शव खींचकर किनारे कर दिया ताकि बाहर खड़े बाकी सैनिकों को शक न हो।
फिर दूसरा आया, तीसरा आया और ओबव्वा ने सबको एक-एक कर उसी तरह मूसल से मार गिराया। कहते हैं कि उसने घंटों तक दुश्मनों को उसी दरार से अंदर घुसने नहीं दिया। अकेली महिला, न कोई कवच, न ढाल, बस एक मूसल और उसका अदम्य साहस। यह दृश्य मानो किसी लोककथा से कम नहीं था।
जब उसका पति वापस आया और उसने देखा कि दरार के पास दुश्मनों की लाशें बिखरी पड़ी हैं, तो वह हैरान रह गया। उसे समझ ही नहीं आया कि ये सब कैसे हुआ। लेकिन जब उसने अपनी पत्नी ओबव्वा को देखा, तो गर्व से भर उठा। उसने तुरंत सींग फूंककर मदाक्कारी नायक की सेना को खबर दी। सैनिक दौड़े आए और उन्होंने बचे हुए दुश्मनों को खदेड़ दिया।
मदाक्कारी नायक ने जब यह वीरता सुनी तो ओबव्वा को दरबार बुलाया और उसे उपहार देना चाहा। लेकिन ओबव्वा ने बड़े विनम्र स्वर में कहा – “महाराज, मैंने तो सिर्फ़ अपना कर्तव्य निभाया है। यह धरती, यह किला और यह नमक जिसका हमने स्वाद चखा है, यही मुझे ताक़त देते हैं। मैं किसी पुरस्कार की हक़दार नहीं।” उसकी यह विनम्रता आज भी लोगों के दिलों को छू जाती है।
लेकिन हर कहानी की तरह, इस Onake Obavva story in Hindi – चित्रदुर्ग किले की वीरांगना के अलग-अलग संस्करण भी हैं। कुछ कहते हैं कि ओबव्वा ने इतने दुश्मनों को मार गिराने के बाद थकावट से दम तोड़ दिया। कुछ मानते हैं कि अंततः हैदर के सैनिकों ने ही उसे मार डाला। और कुछ का कहना है कि उसने आख़िरी सांस तक लड़ाई लड़ी। सच क्या था, यह इतिहास की किताबों में दर्ज नहीं, लेकिन उसकी वीरता लोककथाओं में हमेशा जीवित है।
ब्रिटिश इतिहासकारों ने इस घटना का कहीं उल्लेख नहीं किया। शायद उन्हें यह कहानी अविश्वसनीय लगी होगी कि एक अकेली महिला ने इतनी बड़ी सेना को रोक लिया। और सच कहा जाए, तो कई बातें वाकई चौंकाती हैं। जैसे, यह कैसे संभव है कि सैनिकों ने एक-एक कर चुपचाप मरना स्वीकार किया और किसी ने शोर तक न मचाया। या यह कि चौकीदार अपनी ड्यूटी छोड़कर खाना खाने क्यों चला गया। लेकिन यही तो लोककथाओं का जादू है – वे सवालों से ज़्यादा प्रेरणा छोड़ जाती हैं।
आज भी चित्रदुर्ग किले में वह जगह दिखाई जाती है, जहां से सैनिक अंदर घुसने की कोशिश कर रहे थे। इसे लोग ओनके ओबव्वा किंडली कहते हैं। जब भी कोई वहां जाता है, तो उसके सामने ओबव्वा की कल्पना जीवित हो उठती है – एक साधारण स्त्री, जिसने अपने साहस से इतिहास में अमरता पा ली।
कर्नाटक की लोककथाओं में ओबव्वा का नाम किसी देवी से कम नहीं माना जाता। उनके बलिदान और साहस ने यह साबित कर दिया कि सच्ची वीरता लिंग या शक्ति पर नहीं, बल्कि आत्मा की ताक़त पर निर्भर करती है। Onake Obavva story in Hindi – चित्रदुर्ग किले की वीरांगना सिर्फ़ एक युद्ध की कथा नहीं, बल्कि इस बात का प्रतीक है कि जब संकट आए, तो एक साधारण इंसान भी अद्भुत साहस दिखा सकता है।
निष्कर्ष Onake Obavva story in Hindi
Onake Obavva story in Hindi – चित्रदुर्ग किले की वीरांगना भारत की उन गिनी-चुनी लोककथाओं में से है, जो आज भी दिलों को छूती हैं। यह सिर्फ़ एक स्त्री की बहादुरी की कहानी नहीं, बल्कि उस आत्मबल की दास्तान है, जो हर इंसान के भीतर छुपा है। चाहे कहानी का अंत जैसा भी रहा हो, पर ओबव्वा का नाम इतिहास और लोककथाओं में हमेशा जिंदा रहेगा। चित्रदुर्ग किला आज भी उसकी याद दिलाता है और आने वाली पीढ़ियों को सिखाता है कि सच्ची वीरता कभी भी, कहीं से भी जन्म ले सकती है।