Old History NCERT — कोल व द्रविड़ सभ्यता

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आज की इस पोस्ट में हम बात करेंगे भारत के संपूर्ण इतिहास (History of India in Hindi) के बारे में। वैसे तो भारत का इतिहास बहुत ही गहरा, व्यापक और लंबा है। यह केवल हजारों साल पुराना नहीं है बल्कि इसके भीतर अनगिनत सभ्यताओं, संस्कृतियों और परंपराओं की परतें छिपी हुई हैं। जब भी हम Old History NCERT को पढ़ते हैं या इतिहास की किताबों में झांकते हैं, तो हमें पता चलता है कि भारत केवल आर्यों या मौर्य–गुप्त जैसी प्रसिद्ध सभ्यताओं का ही नहीं, बल्कि उससे भी कहीं अधिक पुरानी जातियों और समुदायों का देश रहा है।

भारत के इतिहास की शुरुआत को समझना आसान काम नहीं है, क्योंकि इसके सबसे शुरुआती दौर में यह सवाल हमेशा सामने आता है कि भारत में सबसे पहले कौन लोग रहते थे? क्या वे यहीं के मूल निवासी थे या बाहर से आए थे? Old History NCERT इन सवालों के जवाब खोजने का एक प्रयास करती है। बड़े-बड़े विद्वान और इतिहासकार इस विषय पर अलग-अलग राय रखते हैं। कुछ मानते हैं कि कोल, द्रविड़ और अन्य आदिवासी जातियाँ भारत की पहली आबादी थीं, तो कुछ यह मानते हैं कि इनमें से कई बाहर से आकर यहाँ बसे।

इतिहास का यही रोचक पहलू है कि इसमें केवल एक सच्चाई नहीं होती, बल्कि कई दृष्टिकोण और शोध जुड़े होते हैं। जब हम History of India in Hindi पढ़ते हैं, तो यह हमें बताता है कि भारत का इतिहास किसी एक जाति, भाषा या धर्म पर आधारित नहीं रहा है। यह हमेशा से अनेकता में एकता का प्रतीक रहा है। यही कारण है कि यहाँ की संस्कृति इतनी गहरी और जीवंत है।

इस कड़ी को आगे बढ़ाने से पहले हमारी आपसे गुजारिश है कि इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ें, समझें और दूसरों तक शेयर करें। क्योंकि आज जिस तरह से कई लोग केवल एक हिस्से को ही इतिहास मानकर बाकी को भुला देते हैं, वह सही दृष्टिकोण नहीं है। हमारा इतिहास केवल एक नहीं, बल्कि अनेक सभ्यताओं और समुदायों के योगदान से मिलकर बना है। यही हम आपको इस सीरीज़ में दिखाने की कोशिश करेंगे।

हमारा उद्देश्य है कि आप Old History NCERT के आधार पर भारत के शुरुआती निवासियों, उनकी सभ्यता, उनके रहन-सहन और उनके विचारों को सही और सच्चे तरीके से समझ सकें। यह पोस्ट आपको बताएगी कि भारत का अतीत कितना विशाल रहा है और आज हम जिस आधुनिक भारत को देखते हैं, वह किन-किन ऐतिहासिक जड़ों से जुड़ा है।

Table of Contents

कोल कौन थे? (Old History NCERT के अनुसार)

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Old History NCERT और कई अन्य ऐतिहासिक ग्रंथों में कोल जाति का वर्णन भारत की सबसे पुरानी जातियों में किया गया है। विद्वानों की राय इस विषय पर भिन्न-भिन्न रही है। कुछ विद्वान मानते हैं कि कोल भारत के मूल निवासी थे, यानी वे बाहर से नहीं आए, बल्कि हमेशा से यहीं रहते थे। वहीं कुछ इतिहासकारों का मत है कि कोल लोग बाहर से भारत आए और उत्तर-पूर्व के पहाड़ी रास्तों से यहाँ प्रवेश किया।

इन मतभेदों के बावजूद यह तथ्य लगभग सभी मानते हैं कि कोल भारत के सबसे पहले निवासियों में से थे। यही कारण है कि History of India in Hindi के शुरुआती अध्यायों में कोल सभ्यता का उल्लेख विशेष महत्व रखता है।

कोल और द्रविड़ों का संघर्ष

इतिहासकारों का मानना है कि जब द्रविड़ सभ्यता उत्तर-पश्चिम से भारत आई, तब उन्होंने उपजाऊ मैदानी इलाकों पर अपना अधिकार जमाना शुरू किया। परिणामस्वरूप कोल लोग मैदानी क्षेत्रों से हटकर पहाड़ों और जंगलों में चले गए। यही कारण है कि आज भी कोल समुदाय मुख्य रूप से पहाड़ी और वनवासी क्षेत्रों में पाया जाता है।

कोल कहाँ पाए जाते हैं?

आज के समय में कोल समुदाय के वंशज भारत के विभिन्न हिस्सों में फैले हुए हैं। विशेष रूप से —

  • बंगाल

  • झारखंड

  • मध्य प्रदेश

  • नागपुर और बिहार के पहाड़ी क्षेत्र

  • दक्षिण भारत (मद्रास के आसपास के जंगल)

इन क्षेत्रों में कोलों की कई शाखाएँ मौजूद हैं। इनमें से कुछ समूह अब भी परंपरागत और अपेक्षाकृत असभ्य जीवनशैली अपनाए हुए हैं, जबकि कई समूह सभ्यता और आधुनिक जीवन की दौड़ में काफी आगे बढ़ चुके हैं।

शारीरिक बनावट और जीवनशैली

Old History NCERT के अनुसार कोल लोग कद में अपेक्षाकृत छोटे और उनकी नाक चपटी बताई गई है। लेकिन यह केवल सामान्य शारीरिक वर्णन है, जो सभी पर लागू नहीं होता। उनका जीवन सरल और प्रकृति-निष्ठ रहा है।

कोल और धर्म-संस्कृति पर प्रभाव

कई विद्वानों ने इस धारणा को चुनौती दी है कि भारत की संस्कृति और धर्म के श्रेष्ठ तत्व केवल आर्यों से आए। उदाहरण के लिए, प्रख्यात इतिहासकार डॉ. आर.सी. मजूमदार का मत है कि आर्यों के धार्मिक विचारों और मान्यताओं को कोल जैसे प्रोटो-ऑस्ट्रेलॉइड्स और द्रविड़ समुदायों ने गहराई से प्रभावित किया। इसका अर्थ है कि भारत की संस्कृति केवल एक जाति का योगदान नहीं, बल्कि कोल और द्रविड़ जैसे समुदायों की भी साझा देन है।

इस प्रकार, History of India in Hindi का अध्ययन करते हुए यह स्पष्ट होता है कि कोल केवल एक आदिवासी समूह भर नहीं थे, बल्कि वे भारत की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति के आरंभिक निर्माता भी थे। उनकी उपस्थिति और योगदान ने भारत की विविधता को गहराई से प्रभावित किया।

संस्कृति और जीवनशैली

old history ncertOld History NCERT और आधुनिक इतिहासकारों के अनुसार, कोल लोगों की सांस्कृतिक पहचान भारत की प्राचीनतम सामाजिक संरचनाओं में से एक है। ये मुंडा भाषा-बोलने वाले आदिवासी समुदाय थे, जिन्हें ब्रिटिशकालीन विद्वानों ने “primitive” या “assabhya” (असभ्य) जाति के रूप में वर्गीकृत किया, लेकिन आज इस दृष्टिकोण को सुधार की ज़रूरत है . ये लोग मुख्यतः गांवों में रहते थे, सरल स्वभाव और शांतिप्रिय माने जाते थे। अजनबियों से दूरी बनाए रखते थे, पर परिचितों के साथ मिलकर खुशी से जीवन व्यतीत करते थे Encyclopedia.com

 


जीविका (Livelihood)

प्रारंभ में कोल लोग शिकारी और जंगली फल-सब्जियों पर निर्भर थे। समय के साथ कृषि की ओर रुख हुआ—धान और गन्ने की खेती, पशुपालन और कभी-कभी हाथी पालन जैसे कार्यों में लगे हुए दिखते हैं। इस परिवर्तन की प्रक्रिया को History of India in Hindi जैसे लेखों में विस्तार से समझाया जा सकता है।


सामाजिक व्यवस्था (Social Organization)

कोल समुदायों में सहयोग और संगठित जीवन की भावना प्रबल थी। ये गांवों में सामूहिक रूप से रहते थे, भोजन साझा करते थे और आपसी सहायता को प्राथमिकता देते थे। जाति प्रथा का प्रभाव इनमें कम था—जातीय या वर्ग-भेद का अभाव देखने को मिलता था। बच्चों की शिक्षा व्यवहारिक (practical) और समुदाय के वरिष्ठ सदस्यों द्वारा दी जाती थी।


दंड विधान (Social Norms & Punishment)

कोल समुदायों की अपने समुदायिक न्याय व्यवस्था थी। अपराधियों को पारंपरिक नियमों के अनुसार दण्डित किया जाता था; गंभीर अपराध करने वालों को गांव से बाहर निकाल दिया जाता था—यह सामाजिक नियंत्रण की परंपरा थी।


धार्मिक दृष्टिकोण (Religious Beliefs)

कोल लोग किसी सर्वशक्तिमान भगवान में विश्वास नहीं रखते थे, बल्कि उनकी आस्था भूत-प्रेतों और प्राकृतिक शक्तियों पर आधारित थी। उनका मानना था कि यदि ये प्रेत अप्रसन्न हो जाएँ, तो वे अपशकुन कर सकते हैं; प्रसन्न रहने पर उनकी रक्षा भी कर सकते हैं। अतः वे उन्हें मोटी रोटी, शहद और दूध अर्पित करते थे; कभी जानवरों और पक्षियों की बलि भी दी जाती थी। पेड़ों को श्रद्धास्थान मानकर उनकी पूजा भी करते थे Encyclopedia.comWikipedia


शव-विसर्जन (Funerary Practices)

शव-विसर्जन की परंपराएं स्थानीय संसाधनों और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बदलती थीं:

  • मृत शरीर को खुले में छोड़ देना, ताकि सूर्य व पक्षी उसे नष्ट कर दें

  • कभी-कभी दफन करना भी प्रचलित था
    ये मान्यताएं Old History NCERT और संबंधित इतिहास-लेखन में बताया गया हैं।


पुरातात्त्विक और सांस्कृतिक संदर्भ

उदाहरण स्वरूप, Baghor Stone नामक अधोलित त्रिभुजाकार पत्थर का मंदिर मध्य प्रदेश में पाया गया है, जिसे कोल और बैगा समुदाय देवी मां के प्रतीक के रूप में पूजा करते हैं। यह स्थल Mother Goddess की आरंभिक उपासना का पुरातात्त्विक प्रमाण माना जाता है.


उल्लेखनीय विद्वान का दृष्टिकोण

इतिहासकार डॉ. आर. सी. मजूमदार (लेख “The History and Culture of the Indian People”) ने यह स्पष्ट किया है कि भारत की संस्कृति केवल Aryan मूल की नहीं है। उन्होंने बताया कि प्रोटो-ऑस्ट्रेलॉयड (Proto-Australoid)द्रविड़ समूहों ने हिंदू धर्म व संस्कृति के धार्मिक विचारों को गहराई से संशोधित किया है। उन्होंने उल्लेख किया कि भारतीय सभ्यता का संकल्पनात्मक आधार—भोजन, वस्त्र, सामाजिक संरचनाएँ—काफी मात्रा में गैर-आर्य मूल के हैं Internet ArchiveDokumen

उपयोगी सारांश तालिका

पहलूविवरण
भाषामुंडा (Kolarian परिवार)
निवासगांव, जंगल, ग्रामीण क्षेत्र
जीवनशैलीप्रारंभ में शिकारी, बाद में कृषक व पशुपालक
सामाजिक संरचनासहयोगी, जाति-रहित, व्यवहारिक शिक्षा
धार्मिक विश्वासभूत-प्रेत, पेड़ और प्रकृति आधारित
शव-विसर्जनखुले में छोड़ा जाना, कभी दफन करना
पुरातात्त्विक प्रमाणBaghor Stone जैसे स्थानीय पूजा स्थल
सांस्कृतिक भूमिकाआर्यों के धार्मिक दृष्टिकोणों पर गहरा प्रभाव

 

द्रविड़ कौन थे? Who were Dravid?

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भारत का इतिहास बहुत गहरा और विस्तृत है। Old History NCERT के अध्ययन में जब हम शुरुआती निवासियों की बात करते हैं, तो “द्रविड़” शब्द विशेष रूप से सामने आता है। इस सवाल ने लंबे समय से इतिहासकारों और शोधकर्ताओं को सोचने पर मजबूर किया है कि “द्रविड़ लोग कौन थे?” और उनका मूल स्थान कहाँ था।

द्रविड़ों की पहचान

द्रविड़ लोग एक प्राचीन भाषाई और सांस्कृतिक समूह थे। उनकी भाषाओं को आज हम द्रविड़ भाषाएँ कहते हैं, जिनमें तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम प्रमुख हैं। यह भाषाएँ आज भी करोड़ों लोग बोलते हैं और दक्षिण भारत की पहचान मानी जाती हैं। Old History NCERT और कई अन्य स्रोत इस बात पर सहमत हैं कि द्रविड़ भारत की सभ्यता के शुरुआती निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाले लोग थे।

शारीरिक और सांस्कृतिक विशेषताएँ

पारंपरिक विवरणों के अनुसार, द्रविड़ लोगों का कद छोटा, सिर बड़ा, नाक अपेक्षाकृत छोटी और रंग गहरा बताया जाता है। जिस समय आर्य भारत में आए, तब द्रविड़ पहले से ही यहाँ बस चुके थे। आर्यों ने उन्हें “अनार्य” और “दरयु” जैसे नामों से संबोधित किया। आर्यों और द्रविड़ों के बीच संघर्ष हुआ और अंततः द्रविड़ लोग दक्षिण भारत की ओर खिसक गए, जहाँ उन्होंने स्थायी रूप से अपना निवास बना लिया। यही कारण है कि आज भी द्रविड़ों की सबसे बड़ी आबादी दक्षिण भारत में पाई जाती है।

वे कहाँ पाए जाते थे?

इतिहास और भाषाविज्ञान दोनों बताते हैं कि द्रविड़ केवल दक्षिण भारत तक सीमित नहीं थे।

  • दक्षिण भारत: तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना में बड़ी आबादी।

  • मध्य भारत: गोंड और कुछ अन्य आदिवासी समुदाय द्रविड़ भाषाएँ बोलते हैं।

  • पाकिस्तान का बलूचिस्तान क्षेत्र: यहाँ ब्राहुई समुदाय आज भी द्रविड़ भाषा बोलता है।

  • अन्य क्षेत्र: श्रीलंका, नेपाल और बांग्लादेश में भी इनके कुछ समूह पाए जाते हैं।

मूल स्थान पर विवाद

यह सवाल कि द्रविड़ भारत के मूल निवासी थे या बाहर से आए, अब भी पूरी तरह स्पष्ट नहीं है। कुछ विद्वान उन्हें भारत के दक्षिण का मूल निवासी (indigenous) मानते हैं, जबकि अन्य यह मानते हैं कि वे पश्चिम एशिया या अन्य क्षेत्रों से भारत आए। इसके बावजूद, यह निर्विवाद है कि उन्होंने दक्षिण भारत में स्थायी रूप से बसकर एक विशिष्ट संस्कृति और सभ्यता का निर्माण किया।

द्रविड़ सभ्यता ~Dravidian Civilization

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घने विद्वानों की यह धारणा थी कि आर्य सभ्यता ही भारत की सबसे पुरानी सभ्यता है परन्तु अब यह सिद्ध कर दिया गया है कि द्रविड़ सभ्यता, आर्य सभ्यता से कहीं अधिक पुरानी है। आयों ने द्रविणों को दस्यु, दानव, राक्षस आदि नामों से पुकारा है-इससे ऐसा है कि द्रविड़ लोग बिल्कुल असभ्य थे; परन्तु वास्तव में ऐसी बात न थी। द्रविड़ लोग सभ्यता की दौड़ में काफी आगे बढ़ गये थे, जो निम्नलिखित विवरण से स्पष्ट हो जायेगा-

 निवास स्थान — Residence Location

History of India in Hindi को पढ़ते समय यह समझना आवश्यक है कि द्रविड़ कौन थे और वे कहाँ रहते थे। Old History NCERT और विद्वानों की मान्यता के अनुसार, द्रविड़ लोग भारत के सबसे पहले नगर-निर्माण करने वाले समुदायों में से थे। उन्होंने केवल गाँवों में ही नहीं, बल्कि संगठित नगरों में भी जीवन बिताया। यही कारण है कि भारतीय इतिहास में “नगरीय सभ्यता” की नींव द्रविड़ों के समय रखी गई मानी जाती है।

उनके नगरों को शत्रुओं से सुरक्षित रखने के लिए चारदीवारी और किलेबंदी की जाती थी। यह इस बात का प्रमाण है कि द्रविड़ समाज केवल कृषि या ग्राम्य जीवन तक सीमित नहीं था, बल्कि वे नगर संगठन और रक्षा की तकनीकों में भी निपुण थे। उनके नगर व्यवस्थित ढंग से बनाए जाते थे—सड़कों की योजना, आवासीय क्षेत्रों का विभाजन और सार्वजनिक स्थानों की संरचना सब कुछ सुसंगठित रूप से देखने को मिलता था।

द्रविड़ कौन थे, यह प्रश्न जब उठता है तो उनके निवास स्थान और स्थापत्य की क्षमता इसका बड़ा उत्तर देते हैं। भारत के कई हिस्सों में पुरातात्त्विक प्रमाण यह दर्शाते हैं कि द्रविड़ों ने अपने समय में सुव्यवस्थित नगर जीवन जीया। इस दृष्टि से देखा जाए तो आर्यों के आगमन से पहले भी भारत में उन्नत शहरी सभ्यता विद्यमान थी, और उसका सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण द्रविड़ समुदाय था।


(2) जीविका के साधन — Means of Livelihood

Old History NCERT के अनुसार द्रविड़ कौन थे, इसे समझने के लिए उनके जीविका साधनों का अध्ययन करना जरूरी है। द्रविड़ लोग गांव और नगर दोनों में निवास करते थे, और इस कारण उनका जीवन कृषि और व्यापार दोनों पर आधारित था। वे कुशल कृषक थे। खेतों में धान, गेंहू, जौ और अन्य अनाज उगाते थे। उन्होंने सिंचाई की उन्नत विधियाँ अपनाई थीं। नदियों में बाँध बनाना, नहरों का निर्माण और पुलों का उपयोग उनके कृषि ज्ञान को दर्शाता है।

कृषि के साथ-साथ द्रविड़ लोग व्यापार में भी सक्रिय थे। उनके पास व्यापार की गहरी समझ थी और वे न केवल स्थानीय स्तर पर, बल्कि विदेशों के साथ भी व्यापार करते थे। वे शांति और संगठनप्रिय व्यापारी थे। समुद्री मार्गों का उपयोग करके उन्होंने पड़ोसी देशों और द्वीपों तक व्यापारिक संबंध स्थापित किए। यह भी उल्लेखनीय है कि वे चतुर नाविक थे और समुद्र पार उपनिवेश स्थापित करने की कोशिशें करते रहे।

History of India in Hindi में यह स्पष्ट मिलता है कि द्रविड़ों ने कृषि और व्यापार दोनों के माध्यम से एक समृद्ध जीवन जीया। यही कारण है कि भारतीय सभ्यता के आर्थिक आधार को समझने के लिए द्रविड़ सभ्यता का अध्ययन अनिवार्य माना जाता है।


(3) सामाजिक संगठन — Social Organization

जब हम यह प्रश्न उठाते हैं कि द्रविड़ कौन थे, तो इसका एक बड़ा उत्तर उनके सामाजिक संगठन में मिलता है। Old History NCERT बताती है कि द्रविड़ समाज मातृक (matrilineal) था। इसका अर्थ यह है कि परिवार में माता को प्रधानता दी जाती थी और वंश की गिनती मातृ पक्ष से की जाती थी। यह व्यवस्था आज भी कुछ दक्षिण भारतीय समुदायों में देखने को मिलती है।

द्रविड़ों में विवाह की कुछ विशिष्ट प्रथाएँ थीं। चचेरे भाई-बहनों में विवाह का प्रचलन एक अनोखी परंपरा थी। सामाजिक संगठन में जाति व्यवस्था का कठोर स्वरूप नहीं था। केवल दो वर्ग प्रमुख थे—ब्राह्मण और शूद्र। क्षत्रिय और वैश्य वर्ग का स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता। इससे यह पता चलता है कि उस समय समाज में ऊँच-नीच का विभाजन उतना गहरा नहीं था जितना बाद के समय में हुआ।

अंत्येष्टि की प्रथाओं में भी बदलाव देखने को मिला। प्रारंभ में वे अपने मृतकों को गाड़ते थे, लेकिन जब आर्यों के संपर्क में आए, तो शव को जलाने की परंपरा भी अपनाई। इससे यह संकेत मिलता है कि द्रविड़ समाज लचीला था और समय के साथ बदलती परिस्थितियों के अनुसार अपनी प्रथाओं में परिवर्तन करता रहा।

History of India in Hindi के लिए द्रविड़ों का सामाजिक संगठन यह सिद्ध करता है कि वे केवल प्राचीन निवासी ही नहीं, बल्कि समाज और परिवार की संरचना को व्यवस्थित रूप देने वाले लोग भी थे।


(4) धार्मिक जीवन — Religious Life

Old History NCERT और अन्य ऐतिहासिक स्रोतों में द्रविड़ों के धार्मिक जीवन का विशेष महत्व है। यदि पूछा जाए कि द्रविड़ कौन थे, तो इसका उत्तर उनके धार्मिक विचारों और मान्यताओं में भी मिलता है। द्रविड़ लोग प्रकृति-पूजक थे। वे पृथ्वी को देवी के रूप में मानते थे और “माता देवी” की पूजा प्रमुख थी। मातृदेवी की प्रधानता ने बाद में भारतीय धार्मिक परंपराओं को गहराई से प्रभावित किया।

शिवलिंग की पूजा का आरंभ भी द्रविड़ों से जुड़ा माना जाता है। वे शिव को “पशुपति” कहते थे और पशुओं की पूजा भी करते थे। नाग-पूजा (विशेषकर शेषनाग की) उनके धार्मिक जीवन का हिस्सा थी। इन सभी मान्यताओं ने बाद में हिंदू धर्म में भी स्थायी स्थान पाया।

द्रविड़ लोग केवल देवताओं की ही पूजा नहीं करते थे, बल्कि वे प्रेतों और आत्माओं में भी विश्वास रखते थे। उन्हें प्रसन्न करने के लिए बलि दी जाती थी और फल, फूल, पान आदि अर्पित किए जाते थे। यही कारण है कि लोक-पूजा और भूत-प्रेत की मान्यता भारतीय समाज की गहरी जड़ों में दिखाई देती है।

उनकी धार्मिक जीवनशैली ने मंदिर संस्कृति को भी जन्म दिया। अपने देवी-देवताओं के लिए मंदिर बनाना और वहाँ पूजा करना, द्रविड़ों की परंपरा रही है। यही परंपरा आगे चलकर दक्षिण भारत की भव्य मंदिर स्थापत्य कला में विकसित हुई।

इस प्रकार, History of India in Hindi यह बताती है कि द्रविड़ों का धार्मिक जीवन भारतीय सभ्यता की नींव का एक अहम हिस्सा था।

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