HISTORIOGRAPHY SOURCES 2024 – Solid लेखन एवं स्रोत

HISTORIOGRAPHY SOURCES

परिचय: HISTORIOGRAPHY SOURCES: इतिहास उन घटनाओं का वृत्तांत होता है जो भूतकाल में घटी हों। अतीत के पुनर्निर्माण के लिए महत्वपूर्ण तथ्यों का चयन करके उन्हें विभिन्न स्रोतों से प्राप्त किया जाता है। इन महत्वपूर्ण तथ्यों को इतिहास के स्रोत कहा जाता है।

आज World Wide History में इन HISTORIOGRAPHY SOURCES को ही तलासने का काम करेगी। प्राचीन भारत के इतिहास और सोर्स के बारे में अलग-अलग तथ्य मौजूद है, जिसे इतिहासकार कुछ कन्फ्यूजन में है। World Wide History आज के इस पूरे आर्टिकल में इसी को सुलझाने की कोशिश करेंगे।

किया भारतीय प्राचीन इतिहास के source ज्यादा मोजूद नही हैं?

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प्राचीन भारत का इतिहास अत्यंत गौरवशाली रहा है, लेकिन इस गौरवशाली इतिहास के पुनर्निर्माण के लिए उपयोगी सामग्री की कमी है। यह कहना गलत होगा कि भारतीयों में इतिहास लेखन के प्रति कोई रुचि नहीं थी। अगर ऐसा होता तो आज हमें प्राचीन भारत के इतिहास के बारे में इतने सोर्स कहां से मिलते. हालांकि, हा बात यह सच है कि भारत में हेरोडोटस, थ्यूसीडाइड्स, और लिवी जैसे इतिहास लेखक नहीं हुए। पर इसका मतलब यह कतई नहीं है कि HISTORIOGRAPHY SOURCES के स्रोतों के लिखने के बारे में भारत के प्राचीन काल में कोई ज्ञान प्राप्त नही था।

हां यह बात तो बिल्कुल मैं भी मानता हूं कि हमारे प्राचीनतम लोग इतिहास को लिखने में ज्यादा रुचि न लेते हुए वह ज्यादातर लापरवाही बरतते थे। “इसकी क्या वजह थी” इस सवाल का सही जवाब तो शायद अभी तक मेरे पास भी नहीं है। हमारी रिसर्च के मुताबिक इसके पीछे दो वजह हो सकती है।

1. इतिहास के बारे में लिखने में कभी भी ज्यादा पैसा नहीं था। आज तो कुछ है लेकिन कल तक इसमें कुछ भी नहीं था। शायद इस वजह से हमारे पूर्वजों ने इतिहास में हुई उन तमाम घटनाओं के बारे में एक भंडारण नहीं किया हो। क्योंकि वह अपना समय और पैसा दोनों बर्बाद नहीं करना चाहते हो। हमारे हिसाब से यह एक वजह हो सकती है।

2. हमारे देश में शुरू से ही वैदिक भाषा का इस्तेमाल होता था। जिसको हम आज संस्कृत भाषा भी कहते हैं यह बोलना और समझना थोड़ा कठिन था। इसमें भी मजे की बात यह है कि इस भाषा को सभी लोग नहीं बोलते थे। ना इसके बारे में ज्यादा लोग जानते थे। ज्यादातर लोग प्रकृति और पाली भाषा का उपयोग करते हैं। इसमें भी मजे की बात यह है कि पढ़े-लिखे लोग संस्कृत भाषा का ही उपयोग करते थे। प्राचीनतम जितना भी भारत के इतिहास के हिस्टोग्राफी सोर्स अभी तक प्राप्त हुए हैं उनमें 90% इसी भाषा में है।

शायद हमारे जो पूर्वज थे वह यह समझते थे कि इस भाषा को ज्यादा लोग जानते नहीं, समझते नहीं, बोलते नहीं, जब इसको ज्यादातर लोग समझते नहीं है तो उन्होंने इतिहास को ज्यादा एक ही जगह इकट्ठा इसलिए नहीं किया होगा जब इसको कोई पढ़ना ही नहीं है तो इकट्ठा करके भी क्या फायदा। जो शायद उनकी सबसे बड़ी भूल थी। हमारे हिसाब से यह दूसरी वजह हो सकती है।

Western एवं भारतीय विद्वानों की धारणाएँ?

Western एवं भारतीय विद्वानों की धारणाएँ?

कुछ Western एवं भारतीय विद्वानों ने यह धारणा बनाई कि प्राचीन भारतीयों में इतिहास लेखन की रुचि नहीं थी। जिनमें: विंटरनिट्स के अनुसार, भारतीयों ने मिथक और इतिहास के बीच विभेद करने का प्रयास नहीं किया। मैकडॉनल्ड के अनुसार, भारत में इतिहास का अस्तित्व नहीं था। इस विचारधारा का समर्थन सीली, एल्फिनस्टन, वी. ए. स्मिथ, और मैक्समूलर जैसे विद्वानों ने किया है।

पर मैं Dr, Sheikh Nasir इस मत का साफ इंकार करता हूं, मेरा मानना है कि प्राचीन काल में भारत के लोगों को लेखन करने का काफी शोक था। वरना हमे इतने सारे HISTORIOGRAPHY SOURCES कैसे प्राप्त होते। हां यह सच जरूर है उन्होंने इतिहास और मिथिक में फर्क नही किया। प्राचीन काल में उन्होंने शायद हर ऐतिहासिक घटना को धर्म और मिथिक के रूप में प्रस्तुत किया।

इसकी सबसे बड़ी शायद वजह यह थी हमारे प्राचीन लोगों को देवमालाओँ पर काफी भरोसा था। और शायद इसी वजह से हर एक ऐतिहासिक घटना को उन्होंने देवमालाओं का नाम दिया। जिससे इतिहास कहां गुम हो गया यह पता ही नहीं चला। और यही वजह है कि हमारा इतिहास एक इतिहास न रहकर ऐक मिथक बन गया।

भारतीय perspective और इतिहास? Indian perspective and history?

प्राचीन भारतीयों ने इतिहास को उसी रूप में नहीं देखा जैसा आज के विद्वान इसको देखते हैं। उनका perspective राजनीतिक, धार्मिक, और दार्शनिक ग्रंथों की रचना में ज्यादा अधिक था। अगर वह इन सभी में अलग–अलग और सही सोर्स के साथ लेखन करते तो शायद आज भारत का इतिहास की ऐसी दुर्गति नही होती।

बल्कि मेरा मानना है कि आज भारत का इतिहास पूरी दुनिया के लिऐ एक नमूना और HISTORIOGRAPHY SOURCES के बारे में गवाह बन जाता। इतिहास मिथक सोर्स को ज्यादा महत्व नही देता है। प्राचीन काल में भारत के लोगों ने अपने इतिहास को देव मालाओं में गुम कर दिया। इनके बारे में हम आगे और पढ़ेंगे।

Sindhu Ghati Sabhyata? Indus Valley Civilization

 

Indus Valley Civilization?

हड़प्पा और मोहनजोदड़ो (Harappa and Mohenjo Daro) जैसे प्राचीनतम खुदाई में मिले इन दो सभ्यताओं (Civilization) से तो यह पता चलता है कि भारत का इतिहास और प्राचीनतम लोग काफी एडवांस (Advance) थे, बाकी दुनिया के मुकाबले। जब सिंधु घाटी के इतिहास को आप देखेंगे तो क्या आपको लगेगा के लगभग 5000 साल पहले भारत के लोग या फिर दुनिया के लोग इतनी तरक्की कर चुके थे। उनके पास जीवन की हर एक चीज मौजूद थी चोडी़-चोडी़ नहरें चौड़ी–चौड़ी सड़के,सड़कों के पास नाले भी छोटे बड़े सभी तरह के मौजूद थे।

आज से 5000 साल पहले पक्की ईंटें मौजूद थी, चुना मौजूद था। जैसे आज हम सीमेंट से लगाकर मकान बनाते हैं। हिरे, सोने, चांदी, तांबे, पीतल, के सभी तरह के आभूषण (Jewelry) भी उनके पास मौजूद थे। उनके पास ऐसो–आराम की हर एक चीज मौजूद थी। हालांकि मैंने मोहनजोदड़ो और हड़प्पा (Harappa and Mohenjo Daro) के ऊपर मैंने तीन आर्टिकल लिखें इनको आप पढ़ सकते हैं।

बस फिर सवाल वही है कि क्या हमारे प्राचीनतम लोगों को इतिहास के लेखन के बारे में नॉलेज नहीं थी। जब इतने एडवांस थे। सब कुछ मौजूद था। तो यह भी जाहिर सी बात है कि उनके पास लिखने की कला भी मोजूद थी। पर कड़वा सच यही है कि उनका इतिहास से ज्यादा धार्मिक मिथिक (Religious myth) पर उन्हें भरोसा था। और यही वजह है के उन्होंने इतिहास के बारे में ना लिखकर, बहुत सारी धार्मिक ग्रंथ ही लिखी।

प्राचीन भारतीय इतिहास के HISTORIOGRAPHY SOURCES

HISTORIOGRAPHY

आज भारत के इतिहास के HISTORIOGRAPHY SOURCES जितने भी मोजूद हैं उनमें पराचीन धार्मिक ग्रंथ है। प्राचीन ग्रंथों के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि भारतीयों में अति प्राचीन काल से ही इतिहास विद्यमान रहा है। वैदिक साहित्य, बौद्ध और जैन ग्रंथों में आचार्यों की सूची (वंश) से यह तथ्य प्रमाणित होता है।

इन प्राचीन HISTORIOGRAPHY SOURCES को हम ने दो भागों में बांट दिया हैं क्योंकि यह दोनों ही अलग-अलग स्रोत है इस वजह से हमने इनको अलग-अलग भागों में बांट दिया है। एक तो है “साहित्यिक स्रोत” और दूसरा है “पुरातात्विक स्रोत”

इन दोनों स्रोतों में एक अलग-अलग बात है “साहित्यिक स्रोत” जो है. वह हमें भारत की उन धार्मिक ग्रंथ या धार्मिक ग्रंथें से भारत के इतिहास के बारे में पता चलता है उसको हम “साहित्यिक स्रोत” कहते हैं और इनमें बहुत सारी किताबें हैं जिनको हम आगे चलकर आपको बताने वाले हैं।

और दूसरे जो स्रोत हमें प्राप्त होते हैं उनको हम “पुरातात्विक स्रोत” कहते हैं इन स्रोतों को इतिहासकार ज्यादा महत्वपूर्ण मानते हैं। ऐसा नहीं है कि हम “साहित्यिक स्रोतों” को महत्व नहीं देते साहित्यिक स्रोतों से हमें भारत के उस इतिहास के बारे में पता चलता है जब से दुनिया में एक परले आया और उसे परले के बाद से दुनिया खत्म हो गई। तब भारत कैसे आबाद हुआ और दुनिया कैसे आबाद हुई यह एक अलग चर्चा का विषय जिसको हम किसी अलग आर्टिकल में लिखेंगे।

यहां बात चल रही है ‘पुरातात्विक स्रोत’ की इन स्रोतों में जैसे कोई शिलालेख या सिक्के वगैरा। जिनसे उसे समय के राजा के बारे में जानकारी प्राप्त होना होता है। इन्हीं सभी चीजों को हम पुरातात्विक स्रोत कहते हैं इनमें मंदिर जैसे महत्वपूर्ण जानकारी भी मौजूद होती है। इनमें सबसे ज्यादा महत्व खास बात यह है कि यह पर्चीन भारत के HISTORIOGRAPHY SOURCES के सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण sources हैं।

साहित्यिक स्रोत – Literary sources

1. वैदिक साहित्य: ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, और अथर्ववेद में इतिहास के कई तथ्य मिलते हैं।
2. बौद्ध ग्रंथ: त्रिपिटक, जातक कथाएँ, और अन्य बौद्ध साहित्य।
3. जैन ग्रंथ: आचारांग सूत्र, कल्पसूत्र, और अन्य जैन साहित्य।
4. अन्य ग्रंथ: महाभारत, रामायण, पुराण, आदि।

पुरातात्विक स्रोत

1. संलिपियों और अभिलेखों: अशोक के शिलालेख, समुद्रगुप्त का प्रयाग प्रशस्ति, हर्ष के नालंदा प्रशस्ति।
2. स्मारक और मंदिर: विभिन्न मंदिरों और स्मारकों की स्थापत्य कला और शिल्पकला।
3. सिक्के: विभिन्न शासकों के समय की मुद्रा और उनकी धातु।

HISTORIOGRAPHY SOURCES साहित्यिक साक्ष्य (LITERARY SOURCES)

LITERARY SOURCES

यहां पर आगे बढ़ने से पहले हमें यह भी जानना होगा कि जितने भी सोर्स हमारे पास मौजूद है यह कौन सी भाषा में लिखा है तभी हम आगे चलकर भारत का इतिहास को और बेहतर तरीके से समझ पाएंगे।

यहाँ भारतीय इतिहास जानने के साहित्यिक स्रोतों का विवरण दिया गया है। प्राचीन भारतीय इतिहास को समझने के लिए साहित्यिक साक्ष्यों का अध्ययन महत्वपूर्ण है। इसे दो मुख्य भागों में बाँटा गया है: धार्मिक साहित्य और लौकिक साहित्य।

1. धार्मिक साहित्य: इसमें ब्राह्मण और ब्राह्मणेत्तर ग्रंथ शामिल हैं।
– ब्राह्मण ग्रंथ: वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, पुराण और स्मृति ग्रंथ।
– ब्राह्मणेत्तर ग्रंथ: बौद्ध और जैन साहित्य।

2. लौकिक साहित्य: इसमें ऐतिहासिक ग्रंथ, जीवनियाँ, और कल्पना-प्रधान रचनाएँ शामिल हैं।

LITERARY SOURCES

इसके अलावा, भाषाविदों ने भारतीय उपमहाद्वीप की भाषाओं को विभिन्न भाषा परिवारों में वर्गीकृत किया है:
इंडो-यूरोपियन भाषा: इसमें हिन्दी, पंजाबी, बांग्ला, असमिया, सिन्धी, गुजराती, मराठी, नेपाली, ओडिया और कश्मीरी भाषाएँ शामिल की गई हैं।

द्रविड़ भाषा: इसमें तमिल, मलयाली, तेलुगु और तुलु प्रमुख भाषा हैं। इनमें तमिल को सबसे प्राचीन भाषा माना जाता है।
प्राकृत भाषाएँ: प्राकृत भाषा के प्रमुख संस्करणों में महाराष्ट्री, शौरसेनी और मागधी शामिल हैं। प्राकृत का प्राचीनतम व्याकरण वररुचि का ‘प्राकृत प्रकाश’ है

ये सभी साहित्यिक साक्ष्य प्राचीन भारतीय इतिहास पर प्रकाश डालने वाली भाषा है इन सभी भाषाओं में भारत के इतिहास को लिखा गया है जिनका आज हम उर्दू, हिंदी, फारसी, चीनी, इंग्लिश, और दुनिया की कई भाषाओं में लिखकर आप सभी के सामने पेश करते हैं। Dr Sheikh Nasir का मानना है कि आजकल जितने भी लोग संस्कृत जैसी भाषा का हिंदी में तर्जुमा करते हैं वह भारत के इतिहास के साथ बड़ी नाइंसाफी करते हैं।

इसके पीछे एक बात यह है जो शायद लोगों को बुरी लगे पर छोटे मुंह बड़ी बात कह रहा हूं। संस्कृत का असल मीनिंग हिंदी में तर्जुमा ही 50% लोग गलत निकालते हैं। अगर हमें भारत के इतिहास को सही से जानना है तो संस्कृत का हमें तर्जुमा पाली और प्रकृति से करने के बाद फिर उसे उर्दू से करें उसके बाद हमें हिंदी में आना चाहिए। यह सही तरीका है मेरे हिसाब से। इससे हमें
HISTORIOGRAPHY SOURCES of India के बारे में ज्यादा जानकारी मिल जाएगी।

निष्कर्ष HISTORIOGRAPHY SOURCES

डॉ. आर. एस. त्रिपाठी ने लिखा है कि प्राचीन भारतीय वाड्मय विशद और समृद्ध होते हुए भी इतिहास की सामग्री में जीरो है। हालांकि, यदि आलोचनात्मक दृष्टि से अध्ययन किया जाए तो यह स्पष्ट होता है कि प्राचीन भारतीय इतिहास के HISTORIOGRAPHY SOURCES पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। प्राचीन भारतीय इतिहास पर प्रकाश डालने वाले स्रोतों को मुख्य रूप से साहित्यिक और पुरातात्विक स्रोतों में बांटा जा सकता है।

हालाकि हम अब भी यही कहेंगे के संस्कृत भाषा का अनुवाद हमे अरबी भाषा में या फिर उर्दू भाषा में ज्यादा करके देखना चाहिए। इसे हमें भारत के इतिहास के बारे में बहुत सारे फैक्ट पता चलेंगे। पर लिखने से पहले माफी चाहता हूं हम भारत के निवासी इन दोनों भाषाओं से ही सब से अधिक नफरत करते हैं। इस वजह से मैं इस टॉपिक पर ज्यादा नहीं लिखना चाहता हूं।

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