बड़े turram khan बनते हो” एसी कहावत आपने अक्सर सुनी होगी। आइए आज इस कहावत के पीछे कि उसे कहानी को जानते हैं जो रियल में एक तुर्रम खान कौन थे (Turamm Khan Kon The)। उस “तुर्रम खां” के बारे में जानते हैं, जिन्होंने 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ़ हुर्रियत पसंदों के कई दिलेराना और कामयाब हमलों की क़यादत की।
इस जुर्म में उन्हें लैम्प पोस्ट से लटका कर सर-ए-आम फ़ाँसी दी गई, इस तरह वो अंग्रेजों द्वारा खुले आम फ़ाँसी पर लटकाए जाने वाले पहले स्वतंत्रता सेनानी थे,
भारतीय इतिहास में 1857 की क्रांति एक महत्वपूर्ण lesson है। इसे अंग्रेजों के खिलाफ़ पहला संगठित विद्रोह माना जाता है। इस विद्रोह में अनेकों स्वतंत्रता सेनानियों ने english rule के खिलाफ़ लड़ाई लड़ी और अपने प्राणों की आहुति दी। परंतु, इतिहास में कुछ नाम और कहानियाँ गुमनाम रह गईं। ऐसी ही एक बहादुरी की मिसाल है “तुर्रम खान कौन थे”। turram khan kon the (Who was Turram Khan?) की कहावत को लगभग हर कोई जानता है, पर रियल में नहीं जानता की तुर्रम खान कौन थे, क्यों था। और उसने ऐसा क्या किया था।
turram khan kon the” तुर्रम खां कौन थे?

Turamm Khan Kon The का असली नाम तुर्बाज़ खान था, लेकिन उन्होंने अपने कारनामों के चलते “तुर्रम खां” का उपनाम पाया। तुर्बाज़ खान का संबंध हैदराबाद डेक्कन से था। उसके माता-पिता के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। इतनी जानकारी भी उनके बारे में आंध्र प्रदेश की एक छोटी सी किताब “कैसे तेलंगाना” रॉयल सीमा, तटीय आंध्र नाम ब्रिटिश राज” जैसी किताब से पता चला।
वरना तुरबाज खान यानी “तुर्रम खां” का नाम इतिहास में गायब होता. खाली किस्सों कहानियों में ही लिया जाता था। Turamm Khan Kon The ने अंग्रेजों के खिलाफ़ लड़ी गई 1857 की क्रांति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला वीर माना जाता है। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ़ कई बहादुरी से भरे हमले किए और क्रांतिकारियों की टोली का नेतृत्व किया।
हालांकि, “तुर्रम खां” नाम आज की भाषा में अक्सर मजाक और बढ़ाई करने वाले के लिए इस्तेमाल होता है, लेकिन असलियत में यह नाम एक बहादुर सेनानी का है। तुर्रम खां के कारनामे अंग्रेजी हुकूमत के लिए इतना बड़ा खतरा थे कि उन्हें सबक सिखाने के लिए अंग्रेजों ने उन्हें फांसी देने का आदेश जारी किया।
1857 की क्रांति में Turamm Khan Kon The की भूमिका
1857 की क्रांति India में अंग्रेजों के खिलाफ़ एक संगठित और व्यापक विद्रोह था। यह विद्रोह तब शुरू हुआ जब भारतीय सिपाहियों ने अंग्रेजों की गुलामी और अत्याचारों से तंग आकर विद्रोह (Rebellion) कर दिया। उस समय, तुर्रम खां ने इस आंदोलन में एक प्रमुख भूमिका निभाई।
उनकी नेतृत्व क्षमता और बहादुरी के चलते उन्होंने कई अंग्रेजी काफिलों पर हमले किए और विद्रोहियों (Rebels) के हौंसले बढ़ाए। तुर्रम खां ने न केवल अंग्रेजों के खिलाफ़ लड़ाई लड़ी, बल्कि हैदराबाद के आस-पास के इलाकों में भी independence की अलख जगाई।
तुर्रम खां की गिरफ्तारी और फांसी
उनकी बहादुरी से परेशान होकर अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। तुर्रम खां को 1857 में पकड़ने के बाद अंग्रेजों ने उन्हें हैदराबाद में सरेआम फांसी दी। यह फांसी उन्हें शहर के एक लैम्प पोस्ट से लटकाकर दी गई। कहा जाता है कि वह अंग्रेजों द्वारा खुले आम फांसी पर चढ़ाए जाने वाले पहले स्वतंत्रता सेनानी थे।
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यह फांसी न केवल तुर्रम खां के जीवन का अंत थी, बल्कि अंग्रेजों द्वारा एक सन्देश था कि जो भी उनके खिलाफ़ उठेगा, उसका हश्र यही होगा। लेकिन तुर्रम खां की बहादुरी और उनकी कुर्बानी ने लाखों भारतीयों के दिलों में independence की आग को और भड़का दिया। जो 1947 में जाकर पूरी भी हुई।
तुर्रम खां के नाम का इस्तेमाल
आज “तुर्रम खां” का नाम आम बोलचाल में अक्सर मजाक और तंज के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। यह नाम उस व्यक्ति के लिए Use होता है जो खुद को बहुत बड़ा बहादुर या विद्वान साबित करने की कोशिश करता है, जबकि असल में वह ऐसा नहीं होता। लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि “तुर्रम खां” Turamm Khan Kon The का असली मतलब और उनकी असली पहचान लोगों की नजरों से Today ओझल हो गई है।
तुर्रम खां वास्तव में एक साहसी व्यक्ति थे जिन्होंने अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी। लेकिन अंग्रेजों की साजिश और उनके ऐतिहासिक दमन के चलते तुर्रम खां का नाम इतिहास के पन्नों से मिटा दिया गया, ताकि उनकी बहादुरी की दास्तान आम लोगों तक न पहुंच सके। यही वजह है कि इतिहास की बहुत सारी किताबों में उसका नाम नहीं मिलता है।
तुर्रम खां का चौराहा
अंग्रेजों के साथ-साथ इतिहासकारों ने भी तुर्रम खान के साथ बड़ी नाइंसाफी की। बड़े-बड़े विद्वान भारत में हुए पर तुरंत कल के बारे में किसी ने एक लफ्ज़ तक नहीं लिखा। अगर कोई विद्वान उसके बारे में उसे समय जानकारी लिखना तो आज उसके बारे में पूरी जानकारी होती। इतिहासकारों और अंग्रेजी हुकूमत की साजिश के बावजूद, आज भी हैदराबाद डेक्कन में तुर्रम खां के नाम से एक चौराहा मंसूब है। यह चौराहा उनके सम्मान में बनाया गया है और यह याद दिलाता है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में ऐसे कई गुमनाम नायक थे, जिनकी कहानियां आज भी अनसुनी रह गईं।
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तुर्रम खां की बहादुरी के सबक
तुर्रम खां की बहादुरी और बलिदान हमें सिखाते हैं कि स्वतंत्रता के लिए किसी भी कुर्बानी से पीछे नहीं हटना चाहिए। उन्होंने अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ़ आवाज उठाई और अपने देश की आजादी के लिए प्राणों की आहुति दी। उनका जीवन इस बात का उदाहरण है कि चाहे situations कितने भी मुश्किल क्यों न हों, अगर दिल में सच्चाई और हिम्मत हो, तो कोई भी चुनौती Impossible नहीं होती।
निष्कर्ष Turamm Khan Kon The {तुर्रम खान कौन थे}
turram khan kon the (Who was Turram Khan?) की कहानी हमें यह भी सिखाती है कि इतिहास के कुछ पहलुओं को जानबूझकर दबाया गया, ताकि हमारी नई पीढ़ी अपने गुमनाम नायकों के बारे में न जान सके। अंग्रेजों ने न केवल तुर्रम खां को फांसी दी, बल्कि उनकी पहचान को भी धूमिल करने की कोशिश की।
आज यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम ऐसे वीरों के बलिदानों को याद रखें और उन्हें सम्मान दें। 1857 की क्रांति में तुर्रम खां की भूमिका को अनदेखा नहीं किया जा सकता, और उनकी बहादुरी हमेशा हमारे दिलों में जिंदा रहेगी।