- भारतीय इतिहास के अत्यंत महत्वपूर्ण और समृद्ध अध्यायों में से एक है गुर्जर प्रतिहार वंश। Gurjara Pratihar dynasty वंश भारतीय इतिहास में गर्व का स्रोत रहा है और उसकी सांस्कृतिक एवं राजनीतिक महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस लेख में, हम गुर्जर प्रतिहार वंश के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करेंगे।
- गुर्जर कॉन है । गुर्जर प्रतिहार वंश। गुर्जर गोत्र कितने हैं ईस पोस्ट को आप गुर्जरों के प्रीव्यू के तौर पर भी देख सकते हैं ।
गुर्जर जनजाति का उदय
- गुर्जर जनजाति का उदय भारतीय इतिहास के प्राचीन समय से ही हुआ है। इनका वर्तमान क्षेत्र उत्तर भारत है, लेकिन इतिहास में इनका प्रसार व्यापक रहा है।
- आज राजस्थान में 40% की आबादी के आसपास गुर्जर जाति बस्ती है । प्राचीनतम भारत के इतिहास के राजपूत युग के दौर में गुर्जर प्रतिहार वंश की एक अलग सल्तनत थी। अनहिलवाड़, (गुजरात) कन्नौज, गौड (बंगाल) तक फैली हुई थी . पूरे उत्तर भारत में गुर्जरों का ही दब–दबा था।
प्रतिहार वंश का उदय
- 8वीं सदी में प्रतिहार वंश का उदय हुआ था। इस वंश के संस्थापक नागभट प्रथम थे, जिन्होंने कुचेन क्षेत्र में अपनी स्वतंत्रता की स्थापना की।
कुछ इतिहासकार हरिश्चंद्र को गुर्जर प्रतिहार वंश का संस्थापक मानते हैं लेकिन वह कब था इसके बारे में अभी तक किसी को ज्यादा जानकारी नहीं है। - Dr, Gori Shanker औछा: के अनुसार हरिश्चंद्र, गुप्त काल में किसी राजा का सामंत के तौर पर काम करता था। हालांकि आगे की जानकारी किसी भी गुर्जर प्रतिहार वंश की ना किसी अभिलेख, या शिलालेख, या कोई भी ऐतिहासिक जगह में अभी भी नहीं मिली है । इसी वजह से ही गुर्जर प्रतिहार वंश का संस्थापक नागभट्ट प्रथम को ही माना जाता है ।
प्रतिहार राजवंश का इतिहास Gurjara Pratihar Ka Itihaas
गुर्जर प्रतिहार वंश ने भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस वंश ने भारतीय इतिहास में विभिन्न क्षेत्रों पर अपनी शक्ति व्यापक की और एक समृद्ध साम्राज्य की स्थापना की।
राजपूत युग में जब तर्कों के आक्रमणों को राजपूत के द्वारा रोका जा रहा था तो उसे समय राजपूत गुर्जर वंश का अहम रोल था। दिल्ली सल्तनत की स्थापना में जो इतनी देरी हुई इसका मुख्य कारण गुर्जर प्रतिहार वंश को ही माना जाता है।
दिल्ली सल्तनत का संस्थापक भले ही Qutubuddin Aibak को माना जाता है लेकिन इसकी दीन मोहम्मद बिन कासिम और महमूद गजनवी के साथ-साथ मोहम्मद गोरी ने रखी थी जिसका पूरा ढांचा तैयार कर दिया था कुतुबुद्दीन ऐबक ने। दिल्ली सल्तनत की नीम को रखना इतना आसान काम नहीं था, क्योंकि उत्तर भारत में विराजमान थे गुर्जर प्रतिहार वंश यह इतनी शक्तिशाली थे की तुर्क तो उनके सामने बोने साबित होते थे।
Gurjara Pratihar dynasty के प्रमुख शासक कौन थे?
नागभटृट प्रथम (730-756)
- प्रतिहार वंश का पहला और ताकतवर राजा था नागभट्ट प्रथम जिसने 730 से 756 ई तक शासन किया था
- नागभट्ट का राज्य क्षेत्र काफी लम्बा था, यह जालौर, अवंती, और कन्नौज, में फैला हुआ था । नागभट्ट की राजधानी उज्जैन यानी (अवंती) थी ।
- ग्वालियर अभिलेख के अनुसार उसने शक्तिशाली म्लेच्छों को पराजित किया था । उसके शासनकाल के समय सिंध की दिशा से ब्लोंचों और अरबों के आक्रमण हुए थे।
- नौसारी अभिलेख (738-39 ईस्वी.) में अरबों द्वारा हारे हुए शासको के नाम लिखे हुए हैं, इन शासको में नागभट प्रथम का नाम दर्ज़ नहीं है।
- ग्वालियर अभिलेख में नागभट्ट प्रथम को म्लेच्छों का ‘विनाशक’ वे दिनों का उद्धारक होने के कारण ‘नारायण का अवतार’ बताएं गया है।
- नागभट्ट प्रथम को अभिलेखों में राम का अवतार, मेघनाथ के युद्ध का प्रतिरोध व इंद्र के अहंकार का नाश करने वाला बताया गया है । उसके दरबार को नागावलोक का दरबार कहा जाता था ।
वस्तराज (775-800 ई.) देवराज का पुत्र
- देवराज का पुत्र एवं उत्तर अधिकारी वस्तराज था, जो गुर्जर प्रतिहार वंश के प्रबल शासको में से एक था । गुर्जर प्रतिहार वंश को दृष्ट प्रदान करने का श्रेय वस्त्रराज को ही है वस्तराज एक शक्तिशाली शासक था उसने अपने साम्राज्य का विस्तार करने का प्रयत्न भी बहुत किया ।
- ग्वालियर अभिलेख से ज्ञात होता है कि वस्त्रराज ने गुर्जरता अथवा मध्य राजपूताना में शासन कर रहे, भांण्डिकुल को प्रास्त कर उस पर अधिकार कर लिया। इसकी पुष्टि ओसियां एवं दौलतपुर अभिलेख से होती है ।
- ईन्द्रायुध को परास्त __ वस्तराज ने 783 ईस्वी में कन्नौज पर आक्रमण किया तथा वहां के शासक ईन्द्रायुध को हराकर कन्नौज पर विजय प्राप्त करके उसे अपने सामंत शासन के रूप में नियुक्त किया ।
- राष्ट्रकूट आक्रमण __ जिस समय उत्तर भारत में गुर्जर प्रतिहार वंश के वस्त्राज शासन शासन कर रहा था, वहीं दक्षिण में राष्ट्रकूट वंश का शक्तिशाली शासक ध्रुव था । ध्रुव ने अपने उत्तरी अभियान के अंतर्गत अन्य कई राजाओं को हराया उनके अतिरिक्त वस्तराज पर भी विजय प्राप्त की जिसकी, पुष्टि वनी-डिंडोरी एवं राधनपुर अभिलेख से होती है ।
नागभट द्वितीय (800-833 ई.)
- नागभट्ट द्वितीय (800-833 ई.) -वत्सराज के पश्चात् उसका पुत्र नागभट्ट द्वितीय शासक बना। नागभट्ट द्वितीय की माता का नाम सुन्दर देवी था। नागभट्ट के शासक बनने के समय गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य की स्थिति शोचनीय थी, किन्तु नागभट्ट ने शक्ति द्वारा पुनः अपने साम्राज्य को शक्तिशाली बनाया। नागभट्ट द्वितीय के शासनकाल की उल्लेखनीय घटना प्रतिहार-साम्राज्य की राजधानी का उज्जैन के स्थान पर कन्नौज बनना था।
- ग्वालियर अभिलेख से ज्ञात होता है कि नागभट्ट द्वितीय ने आंध्र, सिन्ध, विदर्भ तथा कलिंग के राजाओं को अधीन किया। उसने मालव, किरात, तुरूष्क तथा वत्स, आदि पर्वतीय दुर्गों पर भी अधिकार कर लिया।
- राजगद्दी पर बैठने के कुछ वर्ष पश्चात् ही नागभट्ट को भी राष्ट्रकूट शासक गोविन्द तृतीय के आक्रमण का शिकार होना पड़ा। संजन तथा राधनपुर अभिलेखों से नागभट्ट की पराजय की पुष्टि होती है। गोविन्द तृतीय का यह अभियान 802 ई. से पूर्व ही हुआ होगा क्योंकि 802 ई. के माने पत्र में इसका उल्लेख है। अल्तेकर के अनुसार यह युद्ध सम्भवतः बुन्देलखण्ड में किसी स्थान पर हुआ होगा।
- गोविन्द तृतीय – ने पाल शासक धर्मपाल को भी परास्त किया। जिस प्रकार ध्रुव के अभियान के समय धर्मपाल ने लाभ उठाते हुए कन्नौज पर अधिकार किया था, उसी प्रकार गोविन्द तृतीय के आक्रमण के पश्चात् नागभट्ट ने कन्नौज नरेश चक्रायुध पर आक्रमण किया तथा उसे परास्त कर अपनी नयी राजधानी कन्नौज को बनाया।’
- चक्रायुध, नागभट्ट द्वितीय से परास्त होने के पश्चात् धर्मपाल के संरक्षण में पहुंचा, किन्तु नागभट्ट ने उसका पीछा किया तथा धर्मपाल को भी परास्त किया। यह युद्ध सम्भवतः मुंगेर में हुआ था।
Gurjara Pratihar Wansh धार्मिक और सांस्कृतिक यायावर
गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य ने धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस वंश के सम्राटों ने हिन्दू धर्म के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट की और धार्मिक स्थलों की संरक्षा और प्रशासन में अपनी गहरी रुचि दिखाई।
- गुर्जर प्रतिहार वंश जितना युद्ध और रण कौशल में कुशल था, उतना ही वह धार्मिक नीतियों में भी कुशलता दिखाते थे। गुर्जर वंश के वास्तिवकुला के उल्लेख ऊधाहरणिये हैं । मन्दिर खुले मंडप शैली में खुले होते हैं इनके । गुर्जर प्रतिहार वंश के वास्तिवकुला उल्लेखनीय में से एक थी खजूराहो। इतिहास में दर्ज है कि अकेले खजुराहो में गुर्जर प्रतिहार वंश में 85 मंदिरों का निर्माण किया था.
गुर्जर प्रतिहार सम्राटों की योगदान Contribution of Gurjara Pratihara Emperors
गुर्जर प्रतिहार सम्राटों ने भारतीय इतिहास में अपने महत्वपूर्ण योगदान दिए। उन्होंने भारतीय समाज को अपने योग्य नेतृत्व और प्रशासनिक क्षमता का अनुभव किया।
- मिहिर भोज: ( 836 से 885 ई.) रामभद्र का पुत्र एवं उत्तराधिकारी मिहिर भोज था जो इस वंश का सबसे शक्तिशाली एवं पराक्रमी राजा था । मिहिर भोज की अगर उपाधियों की बात करें तो उन्होंने ’आदि वराह’ तथा ‘प्रभास’ और ‘भोज’ की उपाधि धारण की थी, जिनका उल्लेख अभिलेखों में भी मिलता है । मिहिर भोज के बारे में अनेक अभिलेख एवं साहित्यिक स्रोतों से जानकारी प्राप्त होती है.
- वराह लैख, दौलतपुर अभिलेख, देवगढ़ स्तंभ शिलालेख, पहेवा अभिलेख, चाट्सू शिलालेख, तथा सुलेमान के विवरण के उल्लेखनीय के साथ मिहिरभोज के बारे में बहुत सारी जानकारी मिलती है.
- भोज एवं पाल शासन के मध्य संघर्ष___ भोज का पाल समकालीन शासक देव्पल था जो भोज के समान ही महत्व कांची एवं शक्तिशाली था।
गुर्जर प्रतिहार सम्राटों की महत्वपूर्ण कार्यकारिणी
गुर्जर प्रतिहार सम्राटों ने अपने समय में अपनी कार्यकारिणी कौशल का प्रदर्शन किया। उन्होंने अपने सम्राटीय क्षमताओं से भारतीय समाज को संगठित किया और समृद्धि के मार्ग पर ले जाया।
गुर्जर प्रतिहार वंश के पतन का कारण
गुर्जर प्रतिहार सम्राज्य के पतन का कारण विभिन्न स्रोत प्राप्त होते हैं जो निम्नलिखित है ।
- जहां गुर्जर प्रतिहार वंश का पहला और पराक्रमी राजा नागभट्ट प्रथम को माना जाता है, वहीं इसका अंतिम और पराक्रमिक शासक महिपाल को माना जाता है। महिपाल के पश्चात गुर्जर प्रतिहार वंश में कोई ऐसा शासक ना हुआ जो कन्नौज के गौरव को बनाए रखता । महिपाल के पश्चात इस Gurjara Pratihar dynasty में भले ही कई शासक हुए और उन्होंने शासन भी किया–किंतु उनकी आयोग्ता एवं दुर्बलता के कारण गुर्जर प्रतिहार वंश अक्षुण्ण ना रह सका। जो आगे चलकर गुर्जर प्रतिहार के पतन का कारण बना।
- राष्ट्रकूट शासको के निरंतर उत्तरी अभियानों ने भी गुर्जर प्रतिहार वंश के साम्राज्य को अत्यंत क्षति पहुंचाई । राष्ट्रकूट साम्राज्य दक्षिण का एक शक्तिशाली वंश था जिसका सामना गुर्जर प्रतिहार के निर्बल शासक अपने अंतिम दिनों में ना कर सके । गुर्जर प्रतिहार वंश के ताकतवर शासक जितने भी थे, सभी ने राष्ट्रकूटों को क्षति पहुंचाई लेकिन उसके अंतिम शासक ऐसा ना कर सके। जो इस वंश का पतन का कारण भी बना।
प्रतिहार साम्राज्य की दुर्बलता से लाभांतित होकर उनके सामंत ‘चंदेल शासको’ ने स्वतंत्र राज्य बुंदेलखंड में स्थापित कर लिया था. और निरंतर गुर्जर प्रतिहार वंश पर अधिकार जमाने का पर्यातन करते रहे। जो आगे चलकर इस वंश के पतन का कारण भी बना।
- विजयपाल या फिर राज्यपाल: (ये दोनों ऐक ही राजा के नाम हैं) जिन्होंने 995 ई से —1017 ई के मध्य शासन किया. विजयपाल या फिर राज्यपाल की दुर्बलता से लाभ उठाते हुए चालुक्य ने गुजरात काठियावाड़ में स्वतंत्र राज्य की स्थापना कर ली थी. इसी समय और भी अनेक अन्य कई वशों ने स्वतंत्रता का झंडा उठा दिया. और यह Gurjara Pratihar dynasty साम्राज्य के विघटन में बड़ा योगदान का काम था.
- राज्यपाल के शासनकाल: में कन्नौज पर महमूद गजनबी ने आक्रमण किया। राज्यपाल युद्ध से भयभीत होकर भाग गया, जिससे क्रोधित होकर चंदेल शासक विघाधर ने उसकी हत्या कर दी । विघाधर ने त्रिलोचनपाल को गद्दी पर बिठाकर अपने अधीन शासक नियुक्त किया । 1020 ईस्वी में महमूद गजनवी ने पुनः कन्नौज पर आक्रमण किया यह. त्रिलोचनपाल ने मोहम्मद गौरी का बड़ी ही वीरता के साथ सामना किया, लेकिन वह अपने साम्राज्य की सुरक्षा न कर सका । जो एक बड़े साम्राज्य के पतन का अंतिम कारण बना ।
उत्तर भारत के इतिहास में गुर्जर प्रतिहार वंश का स्थान
- गुर्जर प्रतिहार सम्राज्य का उत्तर भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है। इसका प्रभाव उत्तर भारतीय समाज, संस्कृति और राजनीति पर गहरा असर डाला।
- जिस तरीके से राजपूत और गुर्जर प्रतिहार वंश के उत्पत्ति पर अभी तक विवादग्रस्त है, इस तरीके से इस बात पर भी सभी विद्वानों में एक सहमति नहीं बन पाई है, की गुर्जर वंश का स्थान कौनसा है। कहा जाता है की गुर्जर प्रतिहार का पहले शासन काल उज्जैन था. क्योंकि गुर्जर प्रतिहार बाद में कन्नौज में शासन किया ।
- विद्वानों में अब इस बात का मतभेद है–कि गुर्जर वंश का मूल स्थान उज्जैन, या फिर कन्नौज, या फिर खजुराहो है. क्योंकि इन तीनों स्थानों से गुर्जर प्रतिहार वंशों की उत्पत्ति के कुछ लेख भी मिले हैं, और दूसरी बात यह भी है कि यह तीनों स्थान अलग-अलग है । कुछ विद्वानों का कहना है कि गुर्जर प्रतिहार वंश में कई तरह के गोत्र हैं. गुर्जर गोत्र कितने हैं उनकी जानकारी हम एक अलग से लिखे गए पोस्ट में देंगे ताकि आप डिटेल से समझ सकें अभी हम कुछ तर्क के बारे में चलते हैं।
- विद्वानों गुर्जर वंश के मूल निवास स्थान के ऊपर कुछ अपने-अपने तर्क दिए हैं इनमें से जो तर्क मुझे सही लगता है वह है K. A. मुंशी का और इससे और भी कई सहमत हैं. K. A. मुंशी के अनुसार प्राचीन भारत में गुजरात एवं राजस्थान के कुछ भागों को मिलाकर गुर्जर देश कहते थे यहां के निवासी गुर्जर कहलाते थे।
- K. A. Munshi, D. C. Gangoli, और C. V. Vedh के तर्क के अनुसार अगर देखा जाए तो गुर्जर प्रतिहार वंश गुर्जर देश के निवासी थे। आज गुर्जर देश संपूर्ण राजस्थान कुछ गुजरात कुछ हरियाणा में मौजूद हैं थोड़ा सा हिस्सा इसका पंजाब में भी आता है। आज आधुनिक भारत में जितने भी गुर्जर मौजूद है वह इन्हीं इलाकों में सबसे ज्यादा हैं ।
आधुनिक भारत में गुर्जर प्रतिहार का प्रभाव
गुर्जर प्रतिहार का इतिहास आधुनिक भारत में भी महत्वपूर्ण है। उनका समृद्ध विरासत आधुनिक भारतीय समाज को भी प्रेरित करता है। आधुनिक भारत में भी गुर्जरों को भारतीय सेवा में भर्ती होने का बहुत ज्यादा शौक होता है, इसके लिए गुर्जरों के लड़के बचपन से ही तैयारी शुरू कर देते हैं।
- निष्कर्ष गुर्जर प्रतिहार वंश
गुर्जर प्रतिहार वंश भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसका अध्ययन हमें हमारे समृद्ध इतिहास को समझने में मदद करता है और हमें हमारी ऐतिहासिक विरासत के प्रति गर्व महसूस कराता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
Q, गुर्जर प्रतिहार सम्राज्य किस काल में था?
- A, राजपूत युग गुर्जर प्रतिहार सम्राज्य 8वीं से 11वीं सदी के बीच था।
Q, गुर्जर प्रतिहार सम्राज्य के क्या मुख्य कारण थे?
- गुर्जर प्रतिहार सम्राज्य के मुख्य कारण राजनीतिक और साम्राज्यिक उपाधियों का प्राप्त करना था।
Q, गुर्जर प्रतिहार की पतन की वजह क्या थी?
- गुर्जर प्रतिहार की पतन की वजह राजनीतिक और साम्राज्यिक असंतुलन था।
Q, गुर्जर प्रतिहार का सम्राटीय क्षमताओं में योगदान क्या था?
- A, गुर्जर प्रतिहार सम्राटों ने अपनी सम्राटीय क्षमताओं से भारतीय समाज को संगठित किया और समृद्धि के मार्ग पर ले जाया।
Q, गुर्जर प्रतिहार का आधुनिक भारत में क्या प्रभाव रहा?
- A, गुर्जर प्रतिहार वंश का इतिहास आधुनिक भारत में भी महत्वपूर्ण है और उनका समृद्ध विरासत आधुनिक भारतीय समाज को प्रेरित करता है।
इस लेख के माध्यम से हमने गुर्जर प्रतिहार वंश [Gurjara Pratihar dynasty] के महत्वपूर्ण अंशों को अध्ययन किया है और उनके ऐतिहासिक महत्व को समझा है। यह वंश भारतीय समाज के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाया और इसका अध्ययन हमें हमारे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को समझने में मदद करता है।
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