पानीपत का तीसरा युद्ध (Third Battle of Panipat) भारत में काफी चर्चाओं में रहता है, इसका मुख्य कारण भी काफी सॉलिड है, इसमें ऐक तरफ थे मराठा, वहीं दूसरी तरफ थे आज भारत की सबसे टुच्ची समझे जाने वाली कॉम मुस्लिम, ये युद्ध 14 जनवरी 1761 को अहमद शाह अब्दाली और मराठा सेनापति सदाशिव राव भाऊ के मध्य हुआ। यह युद्ध पानीपत के मैदान में, इससे पहले भी यहां दो बार युद्ध लड़ा गया था, जो (वर्तमान समय) हरियाणा में है।
युद्ध से पहले मराठाओं को अपनी सेना पे बहुत घमंड था इसी घमंड के साथ चले थे वह लड़ने अहमद शाह अब्दाली से दिल्ली के समीप पानीपत मै, अब्दाली ने भी मराठों के खिलाफ कई भारतीय शासकों को अपने साथ मिल लिया था। जैसे अवध के नवाब शुजाउद्दौला, और रोहिल्ला सरदार नजीबउद्दौला शामिल थे।
Third Battle of Panipat मे मराठों की सेना काफी बड़ी थी, लेकिन उसे रसद की काफी कमी का सामना करना पड़ रहा था। मराठाओं को अपने ऊपर ओवर कॉन्फिडेंस था वहीं दूसरी तरफ मुसलमान को तुच्छ समझने की गलती करते थे । अहमद शाह अब्दाली ने यह गलती बिल्कुल भी नहीं की उन्होंने मराठों को अपने से ज्यादा ताकतवर समझ कर पानीपत का तीसरा युद्ध की तैयारी की, और इसका परिणाम आगे युद्ध में देखने को मिला ।
पानीपत का तीसरा युद्ध कब हुआ When did the third battle of Panipat take place
14 जनवरी 1761 को सुबह 8:00 बजे के आस पास पानीपत का तीसरा युद्ध शुरू हुआ। मराठों अपनी पूरी ताकत के साथ लड़े भी शुरुआती कई घंटे तक उन्होंने अब्दाली सेना को पीछे तक खदेड़ दिया था। मराठा इतनी बहादुरी से लड़े के अहमद शाह अब्दाली को भी नानी याद आ गई, मराठों की सेना ने शुरुआती लाभ हासिल भी किया, लेकिन अहमद शाह अब्दाली ने अपनी सेना को फिर से संगठित किया, और वापस युद्ध के लिए तैयार हुवे, फिर उस बहादुरी के साथ लड़े जिस बहादूरी के लिए मुसलमान जाने जाते थे, घायल शेर की तरह अब्दाली सेना के वार इतने खतरनाक और घातक थे, के ना तो मराठों को संभालने का मौका मिला, ना पीछे हटने का, मराठों को लड़ते हुए ही इस युद्ध में आने के लिए पछतावा होने लगा।
भले ही यह बात आपको थोड़ी अविश्वासनी लगे लेकिन यही सच है, मराठों की सेना तो भाग खड़ी हुई थी, इस युद्ध में तो (विश्वासराव पेशवा) के भी पैर डगमगा गए थे, मुसलमानों की इतनी तेज और तिर्वगति के प्रहारों को देखकर खुद ‘सदाशिव राव भाऊ’ भी पीछे हटने को मजबूर हो गए थे । भले ही हिंदू, और मराठाओं, को यह बात ना पचे लेकिन इतिहासकार इसके बारे में यही लिखते हैं।
Third Battle of Panipat मे भारतीय इतिहासकारों का मत
पानीपत का तीसरा युद्ध को महत्व इसलिए ज्यादा गया जाता है कि यह मुस्लिम और मराठा के बीच लड़ा गया था । मराठा दी भारत की एक वह विशाल गौरवशाली जाती है जिनके सामने हर एक बोनी साबित होती है। मराठों की वजह से ईस युद्ध का ज्यादा महत्व है, पानीपत के इस युद्ध के बारे में भारतीय Historians और विदेशी इतिहासकारों में सभी का मत कुछ इस तरीके का है, और उनके नाम यह है।
V A Smith, DR Bhandarkar, Tirpathi जी, इन तीनों का ऐक ही मत है।
पानीपत का तीसरा युद्ध :– अहमद शाह अब्दाली और उसकी सेना के वार इतनी तेज और तिर्वगति के थे के ‘सदाशिव राव भाव’ को भी पीछे हटने पर मजबूर होना ही पड़ा।
Third Battle of Panipat ईस युद्ध में ‘विश्वासराव पेशवा’ मारे गए। यह मराठों के लिए एक बड़ा झटका था। साथ ही ‘सदाशिव राव भाऊ’ भी पानीपत का तीसरा युद्ध में मारे गए। उनके साथ इसी युद्ध में कई अन्य महान मराठा सरदार भी वीर गति को प्राप्त हो गए थे।
मराठा सेना को भारी हार का सामना करना पड़ा। अहमद शाह अब्दाली ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया और मराठों को उत्तर भारत से पीछे हटने पर मजबूर होना ही पड़ा।
Third Battle of Panipat ये मराठा साम्राज्य के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ था। मराठाओं को इस युद्ध में अगर जीत मिल जाती तो दिल्ली की सत्ता पर जब वह काबिज रहते तो शायद भारत की Politics की दशा आज कुछ और ही होती, यह बात तो मैं भी स्वीकार करता हूं ।
इस हार के बाद, मराठों की शक्ति में भयंकर गिरावट आई जिससे मराठा और उत्तर भारत की राजनीति मे बड़ा बदलाव होने से बच गया। पानीपत का तीसरा युद्ध ( Third Battle of Panipat) भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण युद्ध था। इस युद्ध ने उत्तर भारत की राजनीति को पूरी तरह से बदल दिया।