दिल्ली सल्तनत क्यों प्रसिद्ध है 1206 इस्लाम का जन्म कब हुआ

दिल्ली सल्तनत क्यों प्रसिद्ध है

दिल्ली सल्तनत क्यों प्रसिद्ध है: दिल्ली सल्तनत (1206 से 1526) मध्यकालीन भारत के इतिहास की एक प्राचीनतम कहानी (Hustory) है जिसमें कुछ उथल-पुथल मौजूद है. Delhi Sultanate इन्हीं उथल-पुथल की वजह से ही दिल्ली सल्तनत इतनी प्रसिद्ध है ।

पूरे विश्व भर में जिसकी जिज्ञासा जानने की हर एक की इच्छा होती है । दिल्ली सल्तनत क्यों प्रसिद्ध है, इसके कई कारण मौजूद हैं राजनीतिक, धार्मिक कारण, विदेशी कारण, और शासन काल कारण, यहां की वीरता के कारण, और सबसे खास बात यहां है, सोने की चिड़िया कहे जाने वाले भारत की  राजनीति, कूटनीति, धार्मिक नीति, और भारत की शुरू से ही व्यापारिक नीति, इस तरह के जो भी कारण थे, इन्हीं वजह से भारत की दिल्ली सल्तनत बहुत फेमस हुई ।  आज पूरे विश्व में सबसे ज्यादा पसंद की जाती है ज्यादातर इतिहासकार दिल्ली सल्तनत बारे में लिखना पसंद करते हैं ।

भारत अपनी संस्कृति, कला, और अपनी खूबसूरती, के लिए हमेशा से ही जाना जाता था । भारत की तरफ सारे ही विदेशियों की नजरे गढ़ी हुई थी, क्योंकि भारत की संस्कृति पूरे विश्व से अलग थी, जो आज तक भी बनी हुई है । भारत की कला भी पूरे विश्व से अलग थी, जो आज भी है, साथ ही भारत की सुंदरता और व्यापारिक गुण ऐसे थे जो भारत को पूरे विश्व से अलग बना के रखते थे ।

इन वजह से लगातार भारत विदेशियों की आंखों में खटकता रहता था , हर कोई भारत पर आक्रमण करना चाहता था और बहुत सारे विदेशियों द्वारा किया भी गया, इसमें पारसिक, पाषाण, हूण, शक, कुषाण, सिथियन, तुर्क, गुर्जर, राजपूत, अरब, मंगोल, अंग्रेज जैसे विदेशी थे।

प्रथम राजपूत कौन थे? दिल्ली सल्तनत क्यों प्रसिद्ध है

दिल्ली सल्तनत क्यों प्रसिद्ध है के बारे में लिखा जा रहा हो और राजपूतों के बारे में ना लिखा जाए यह दिल्ली सल्तनत क्यों प्रसिद्ध है और राजपूत दोनों के साथ नाइंसाफी होगी, दिल्ली सल्तनत क्यों प्रसिद्ध है के बारे में और जानने से पहले पहले हमें राजपूतों के बारे में जानना पड़ेगा, वरना दिल्ली सल्तनत के बारे में आपको अधूरी जानकारी मिलेगी इसी वजह से हम राजपुतों के बारे में यहां आगे लिख रहे हैं, तभी तो आप जान पाएंगे दिल्ली सल्तनत क्यों प्रसिद्ध है ।

Dr गौरी शंकर औछा, और Dr भंडारकर, के अलावा ज्यादातर गुर्जर और राजपूतों को विदेशी ही मानते हैं और इसके वह अपने-अपने पुख्ता सबूत भी देते हैं गुर्जरों को शक और हूण, के साथ भारत में प्रवेश करने वाली जाति मानते हैं ।
राजपूत शब्द की सबसे पहले उत्पत्ति 6 ठी शताब्दी ई. में हुई थी. राजपूतों ने 6ठी शताब्दी ई. से 12 वीं सदी के बीच भारतीय इतिहास में एक प्रमुख स्थान गरहन किया था.

राजपुत शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, राज: राजघरना और पूत: का अर्थ होता है पूत्र। पहले राजपूत शब्द का उपयोग राज पुत्रों के लिए होता था यानी जो राजा के पुत्र होते थे, उनके लिए राजपूत का उपयोग किया जाता था, बाद में इस शब्द की ही जातियां बन गई । राजपुत्रों की ही संतान आगे चलकर राजपूत कहलाए । श्री कर्नल जेम्स टॉड द्वारा दिए गए सिद्धांत के अनुसार राजपूतों की उत्पत्ति विदेशी मूल की थी. श्री कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार राजपूत कुषाण,शक और हूणों के वंशज थे. जो आगे चलकर राजपूत कहलाए।

राजपूतों के बारे में भारतीय इतिहासकार लिखते हैं कि यह अग्निकुंड के द्वारा पैदा हुए थे । जो आधुनिक इतिहासकार इस बात को स्वीकारते ही नहीं है, इसको ना स्वीकारने का तथ्य यह है कि अग्नि किसी को पैदा नहीं कर सकती, अग्नि के द्वारा किसी को जलाया ही जा सकता है।  राजपूत शब्द का प्रयोग पहले राज्य पुत्रों के लिए होता था, इस तथ्य पर सभी इतिहासकार सहमत भी होते हैं । इस पहलू से राजपूत  या तो हूणों, संतान थे या शक, या सिथियन की संतान थे।

Dr गौरी शंकर औछा, और Dr भंडारकर, राजपूत को प्राचीन क्षत्रियों की ही संतान मानते हैं, हालांकि इस बात का कोई पुख्ता सबूत वह पेश नहीं कर पाते हैं, Dr गौरी शंकर औछा, और Dr भंडारकर, का मत है कि देश के लिए मर मिटने का जो उनका जज्बा है, वह कोई विदेशी नहीं कर सकता सिर्फ एक भारतीय ही कर सकता है । हालांकि इस बात में ज्यादा सच्चाई नजर नहीं आती है, क्योंकि आधुनिक भारत में हर एक जाति भारत के लिए मर मिटने के लिए अपनी की जान लगा देती है । ऐसा नहीं है कि मध्यकालीन भारत में मुसलमान ने भारत के लिए अपनी जान कुर्बान नहीं की है, अंग्रेजों से लड़ते वक्त लाखों की संख्या में मुसलमान मारे गए थे,  और आजादी की सबसे पहले आवाज बुलंद मुसलमान ने ही की थी ।

1857 की क्रांति में मथुरा (यूपी) से लेकर रोहतक (हरियाणा) तक शायद ही कोई ऐसा द्रख्त होगा जिस पर किसी एक मुसलमान की लाश लटकी हुई नहीं मिली होगी । फिर भी उनके इतिहास को आज भुला दिया गया है । यह एक सच्चा इतिहास है और यह इतिहास की किताबों में लिखा गया है । बसरते आधुनिक  इतिहास की किताबों में शायद यह आपको देखने को कम मिले लेकिन यही सच है।

हां यह बात भी मैं आपको बताता चालू की गुर्जर, और राजपूत, भारत की दो ऐसी प्राचीनतम जातियां हैं जो भारत में बहुत समय पहले आ गई थी और वह भारत में अब इतनी घुल मिल गई है कि उनके बारे में विदेशी होने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता है । दिल्ली सल्तनत क्यों प्रसिद्ध है इसका एक बहुत बड़ा कारण यह भी है, इस्लाम का पूरी दुनिया में फैल जाना। लेकिन जिस तरीके से इस्लाम पूरी दुनिया में फैला वहीं भारत में इस्लाम को इतनी जल्दी फैलने में बहुत समय लगा। यह भी दिल्ली सल्तनत के प्रसिद्ध होने का एक कारण है,  चलो अब मैं डिटेल से बताने की कोशिश करता हूं ।

इस्लाम का जन्म कब हुआ? when was islam born

 

इस्लाम का जन्म कब हुआ

इस्लाम का उदय {हज़रत आदम अलैहिस्सलाम} के दुनिया में आने से हुआ। इसके अन्तिम नबी {हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम} का जन्म 570 ईस्वी में मक्का में हुआ था। हजरत मुहम्मद साहब ने  लगभग 611 या ६१३  इ. के आसपास  लोगों को अपने ज्ञान का उपदेशा देना आरंभ किया था। इसी घटना को ज्यादातर इतिहासकार इस्लाम के आरंभ के रूप में मानते है।

इस्लाम धर्म का उदय अरब में हुआ था। शुरुआत के लगभग 50 से 60 साल तक तो इस्लाम अरब के आसपास ही रहा, लेकिन जब उसने फैलना शुरू किया तो उसने बहुत ही जल्द रूस, फारस, केसर, और किसरा, यूनान, इराक, ईरान, इजिप्त, फलस्तीन, जैसी साल्तनातो को जल्दी ही फतह कर लिया। यह जितनी भी मैं यहां लिखी है यह दुनिया की बहुत बड़ी ताकत थी, या इनको आप आज के टाइम में एक सुपर पावर भी कह सकते हैं,  इनको अरबों ने बहुत ही आसानी से फतह  (जीत लिया) कर लिया था।

अरब पहली बार भारत में 636 ई. मैं  थाना (मुंबई) मे आये थे, उनके इतिहास के बारे में ज्यादा कुछ जानकारी है नहीं, कहां जाता है कि यह मोहम्मद (सल्लालाहू अलैहि वसल्लम) के सहाबा (सहाबा उनको कहते हैं जिन्होंने मुहम्मद साहब को देखा और उस पर ईमान (इस्लाम धर्म कबूल किया) लाए और मरते दम तक कभी भी मुहम्मद साहब का साथ नही छोड़ा) थे । इसी समय चौहान, और चाहमान, जैसी राजपूतों की कई शाखाएं भारत में राज सिंहासन चला रही थीं।

चौहान और चाहमान राजपूतों की दो शाखाएं हैं, राजपूतों की यह शाखा राजपूतों से कभी अधिक महत्व रखती है। जब (सहाबा)भारत में आए उसे समय उत्तर भारत और गुजरात पर चाहमान और चौहानों का राज्य सिहाशन था । चौहान और चाहमान यह काफी वीर लड़ाकू और शेर दिल होते थे । चौहान और चाहमान ही ऐसी दो जाती थी, जिन्होंने विलुप्त होते हुए हिंदू धर्म को दोबारा उभरने की कोशिश की थी, क्योंकि जब भारत में जैन धर्म, और बौद्ध धर्म, आया तो ब्राह्मण धर्म संकट में पड़ गया था ।

सहाबाओं के बारे में भारत के इतिहासकारों ने कभी लिखना पसंद ही नहीं किया और ना ही इनके बारे में ज्यादा जानकारी मिलती है । मुस्लिम इतिहासकारों ने उनके बारे में थोड़ा बहुत लिखा है लेकिन ज्यादा जानकारी वहां भी उपलब्ध नहीं है। दूसरी बार अरब भारत में 643 ईस्वी में आए थे और यह भुडूच में आए थे।  ये  भी (सहाबा थे) इनके बारे में भी भारतीय इतिहास में यही लिखा गया है कि इनको भी ज्यादा सफलता भारत में प्राप्त नहीं हुई थी । उसके बाद अरब भारत में आए ही नहीं, भारत को छोड़कर अरबों ने बाकी और दुनिया को  फहत करना शुरू किया।

अगले 65 साल तक अरब भारत के बारे में बिल्कुल भूल ही गए थे कई इतिहासकार यह लिखते हैं कि अरबो ने भारत के बारे में सोचना तक भी छोड़ दिया था। दिल्ली सल्तनत क्यों प्रसिद्ध है, इसका ये ऐक परमुख कारण है। वोह अरब जिनके सामने उस समय की सबसे ताकतवर सुपर पावर देशों ने घुटने टेक दिए। रूस और फारस दुनिया की यह दो पावरफुल ताकते भी अरबों के सामने बौनी साबित हुई, तो अब अंदाजा लगा ही सकते हैं , के भारत के ऊपर दुनियां की नजरों का होना आवश्यक तो था। हां, यह बात बिल्कुल अलग है कि उसे समय भारत में दिल्ली इतना बड़ा ना शहर था, ना यहां कोई सल्तनत थी, दिल्ली सल्तनत का श्रेय मुसलमान को ही जाता है और यह मध्यकालीन भारत की सबसे पावरफुल सल्तनत बन गई थी । और दिल्ली सल्तनत क्यों प्रसिद्ध है, ये इसका मुख्य कारण है ।

िल्ली सल्तनत की उत्पत्ति और उसका पतन

प्रकृति का नियम होता है अगर कोई चीज उत्पन्न हो रही है तो एक न एक दिन उसका पतन भी जरूर होता है और यही हुआ दिल्ली सल्तनत के साथ भी हर कोई यह जानने के इच्छुक है कि दिल्ली सल्तनत क्यों प्रसिद्ध है,  दिल्ली सल्तनत क्यों प्रसिद्ध है की बात हो गई कि इसमें इस्लाम का एक बहुत बड़ा रोल है और तुकों का भी रोल है साथ ही इसमें राजपूत और मराठों का भी अहम रोल है ।

दिल्ली सल्तनत की स्थापना Qutubuddin Aibak ने सन 1206 के साथ स्थापना की थी । इसके बाद दिल्ली सल्तनत में कई वंश आए । लेकिन अंत में था लोदी वंश जो इसके पाटन का कारण बना, और इतिहास में इसका नाम लिखा गया। पानीपत का युद्ध वह जगह है जहां दिल्ली सल्तनत का पूर्ण विराम लगाया जाता है।

प्रथम युद्ध पानीपत का इब्राहिम लोदी और बाबर जहीरूद्दीन के बीच लड़ा गया था। जिसमें बाबर जहीरूद्दीन की विजय हुई और इब्राहिम लोदी को हर पहचाना करना पड़ा। इब्राहिम लोदी के युद्ध में मारे जाने के बाद ही दिल्ली सल्तनत का पतन हो गया था और अब हिंदुस्तान में नई सल्तनत का उदय हुआ जो मुगल साम्राज्य के नाम से जानी गई ।
मुगल साम्राज्य को भारतीय इतिहासकार मंगोल साम्राज्य के नाम से भी जाना जाता है । क्योंकि बाबर जहीरूद्दीन मंगोलों के ही वंशज थे । दिल्ली सल्तनत क्यों प्रसिद्ध है. ये इसका कुछ लेखा-जोखा था उम्मीद करता हूँ आप समझ गए के दिल्ली सल्तनत क्यों प्रसिद्ध है।

https://youtu.be/DNQI-l77K5cविडियो

https://youtu.be/DNQI-l77K5c

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